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देश की समृद्धि में मील का पत्थर ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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भारत में संस्कारों का सूर्य इसीलिए अस्त नहीं होता,क्योंकि हम अपनी परम्परा को बार-बार दोहराते हैं और अनुसरण में भी लाते हैं। हम सिर्फ अपने लिए काम नहीं करते हैं, अपने परिवार के लिए नहीं कमाते हैं,अपनी जाति या धर्म के लिए दान नहीं देते हैं,हम संसार के सभी प्राणियों के लिए कार्य करते हैं। सभी के लिए कमाते हैं। सभी के लिए उसका उपयोग हो,इस भाव के साथ दान देते हैं ।
भारत की आत्मा किसी ध्येय वाक्य में है तो वह है ‘वसुधैव कुटुंबकम।’ हम सभी भारतवासी एक परिवार का हिस्सा हैं। जैसे सबका अपना-अपना योगदान परिवार के संचालन में होता है,वैसा ही योगदान आज देश को चाहिए। हम याद रखें कि वहीं परिवार और देश को आगे बढ़ाता है,जहाँ विविधताओं के बावजूद वैचारिक मतभेदों के बीच भी मन भेद न हो। कर्तव्यों के प्रति परिवार का हर सदस्य सजग हो। हर कोई एक-दूसरे की मदद के लिए,मार्गदर्शन के लिए,सहयोग के लिए तत्पर हो। ‘कोरोना’ विषाणु के कारण हुई तालाबंदी से वर्तमान में भारत की आर्थिक स्थिति काफी गड़बड़ा गई है। इस बात को पूरा देश स्वीकार रहा है, जिसके चलते १२ मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में आर्थिक हालात को सुधारने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की बात कही।
प्रधानमंत्री ही भारत रूपी परिवार के मुखिया हैं,और अपने परिवार,देश के लिए प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए विभिन्न वर्गों को आर्थिक व्यवस्था की कड़ियों को २० लाख करोड़ रुपए का पैकेज देने की बात कही। इस पैकेज में भूमि,श्रम और कानून आदि पर बल दिया है। ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग,गृह उद्योग,हमारे लघु-मंझोले उद्योगों के लिए है,जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है,जो आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का मजबूत आधार है। ये पैकेज २०२० में देश की विकास यात्रा को,आत्म निर्भर भारत अभियान को एक नई गति देगा। इस आर्थिक पैकेज से देश के श्रमिकों, किसानों,मध्यमवर्गीय लोगों के साथ छोटे उद्योगों को बड़ी राहत की उम्मीद जगी है।
प्रधानमंत्री ने हर भारतवासी को अपने स्थानीय (लोकल) के लिए आवाज (वोकल) बनने को कहा। स्थानीय उत्पाद खरीदने और उनका गर्व से प्रचार करने को कहा है। यह प्रयास देश के हर हाथ को काम देने की और हर घर को रोजगार देने की अच्छी पहल है, क्योंकि जो चीज देश के बाहर से आती है वह सामान्य लागत से दस बीस गुना दाम में हम खरीदते आए हैं। वही चीज हमारी तकनीक से तैयार की जाए तो इसका बड़ा लाभ देश को होगा। देश का पैसा देश में ही रहेगा। बेरोजगारी दूर होगी,देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा।
विश्व की आज की स्थिति के लिए प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आव्हान किया, क्योंकि भारत में जब ‘कोरोना’ संकट शुरु हुआ,तब भारत में एक भी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) नहीं बनते थे। एन-९५ मुख पट्टी का भारत में नाममात्र उत्पादन होता था। आज भारत में ही हर रोज २ लाख उपकरण और २ लाख एन-९५ मुख पट्टी बनाई जा रही है,और मदद के रूप में विश्वभर में भेजे जा रहे हैं। हम जब आत्मनिर्भर बने तो हम दूसरों की मदद भी कर सके। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है,तो आत्मकेन्द्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता। भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख,सहयोग और शांति की चिंता होती है। भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है।
भारत के पास साधन हैं,भारत के पास सामर्थ्य है,भारत में दुनिया की सबसे बेहतरीन योग्यता है,जरुरत है बढ़िया उत्पाद बनाने,अपनी गुणवत्ता और बेहतर बनाने, विपणन को और आधुनिक बनाने की,ये हम कर सकते हैं। हम ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं। आज तो चाह भी है,राह भी है। ये अवसर है भारत को आत्मनिर्भर बनाने का,सुखी होने का। कहा भी गया है-
‘सर्व परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥’
यानि,दूसरे पर आधार रखना पड़े वह दुःख,स्वयं के अधीन हो वह सुख;यही सुख और दुःख का संक्षिप्त में लक्षण है।
जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही दुनिया में आज भारत को भी नए मार्ग खोलने हैं, और उसकी पहल प्रधानमंत्री ने की है ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए अनुरोध कर के। यह पहल ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ की भावना से ओत-प्रोत तो है ही,भारत को समृद्ध करने की क्षेत्र में भी मील का पत्थर साबित होगी,साथ ही राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोने का आधार भी बनेगी।

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