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नारी के बिना कुछ मूल्य नहीं

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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वैदिक युग में वह विदुषी थी,
औ आदिकाल की वीरमती
कभी वीरमती-कभी कामिनी बन,
बस यही रुप दिखलाती थी।
फिर भक्तिकाल आते-आते,
उसको फिर भक्ति के भाव दिए
सूर की भक्ति में वत्सलता,
औ तुलसी की भक्ति में त्यागमयी।
फिर रीतिकाल आने पर वह,
मदमस्त विलास की वस्तु बनी
उसमें बस रति का रुप दिखा,
अभिसारिका रुप दिखाते थे।
स्वातन्त्र्यकाल आते-आते,
सबला बन रुप दिखाती है
नारी के बिना एक घर ही नहीं,
संसार अधूरा लगता है।
नारी ने दिया इस दुनिया को,
विश्वास,प्रेरणा और प्रेम
निर्माण किया औ विकास किया,
पुरुषों की सदा सहाय बनी।
निज अर्न्तमन से कोमल है,
वह त्याग,दया,स्नेह लिए
फिर वत्सल रुप निराला है,
प्रतिमूर्ति बनी वह सुन्दरतम।
सत्यं शिव उसमें समाहित हैं,
नारी के बिना कुछ मूल्य नहीं
नारी महिमा वर्णित करके,
उत्पीड़न पर मैं आती हूँ।
कभी दहेज के दानव ने,
फिर बलात्कार के मानव ने
मानवता की हद पार करे,
तेजाब उड़ेला जाता है।
मरकर सम्मान गंवाती है,
जीकर भी मर-मर जाती है
इस दुनिया की दुनियादारी,
हर रोज निभाई जाती है।
विद्रोह की शक्ति कहाँ है अभी,
संघर्ष भी न कर पाती है
अपमान सदा सहती है वो,
पर कर लेती समझौता है
अधिकारों के प्रति सजग हुई,
पर न्याय समाज न देता है।
उत्पीड़न के प्रत्युत्तर में,
संघर्ष किए वह जाती है।
संघर्ष किए वह जाती है…॥

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