डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित हो गया। अब बजट सत्र ही होगा। वैसे सरकार ने यह फैसला लगभग सभी विरोधी दलों के नेताओं की सहमति के बाद किया है। संसदीय कार्यमंत्री का यह तर्क कुछ वजनदार जरुर है कि,संसद के पिछले सत्र में सांसदों की उपस्थिति काफी कम रही और कुछ सांसद-मंत्री कोरोना
के कारण स्वर्गवासी भी हो गए। अब अगला सत्र,बजट सत्र जनवरी २०२१ याने कुछ ही दिन में शुरु होने वाला है। कार्यमंत्री ने कुछ कांग्रेसी और तृणमूल सांसदों की आपत्ति पर यह भी कहा है कि,भाजपा पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना का आरोप लगाने वाले नेता जरा अपनी पार्टियों में से पारिवारिक तानाशाही को तो कम करके दिखाएं। इन तर्कों के बावजूद यदि सरकार चाहती तो वह सभी दलीय नेताओं को शीतकालीन सत्र के लिए राजी कर सकती थी। यदि वे उस सत्र का बहिष्कार करते तो,उनकी ही नाक कट जाती। यदि संसद का यह सत्र आहूत होता तो सरकार और सारे देश को झंकृत करने वाले कुछ मुद्दों पर जमकर बहस होती। यह ठीक है कि,उस बहस में विपक्षी सांसद,सही या गलत,सरकार की टांग खींचे बिना नहीं रहते लेकिन उस बहस में से कुछ रचनात्मक सुझाव,प्रामाणिक शिकायतें और उपयोगी रास्ते भी निकलते। इस समय कोरोना के टीके का देशव्यापी वितरण,आर्थिक शैथिल्य,बेरोजगारी,किसान आंदोलन,भारत-चीन विवाद आदि ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं,जिन पर खुलकर संवाद होता। यह संवाद इसलिए भी जरुरी है कि, भाजपा के प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री तथा अन्य नेतागण पत्रकार-परिषद करने से घबराते हैं। आम जनता-दरबार लगाने की तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते। संवाद की यह कमी किसी भी सरकार के लिए बहुत भारी पड़ सकती है। संवाद की इसी कमी के कारण हिटलर,मुसोलिनी और स्तालिन जैसे बड़े नेता मिट्टी के पुतलों की तरह धराशायी हो गए। इसमें तो विपक्षियों को जितना लाभ है,उतना किसी को नहीं है। जिन लोगों को भारत राष्ट्र और इसके लोकतंत्र की चिंता है,वे चाहेंगे कि अगले माह होने वाला बजट सत्र थोड़ा लंबा चले और उसमें स्वस्थ बहस खुलकर हो,ताकि देश की समस्याओं का समयोचित समाधान हो सके।
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।