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आज़ादी

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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हिंद की आजादी,
इतनी आसान नहीं थी
हर तरफ आतताइयों की
यातनाएं आम थी,
फिरंगियों के राज के
अजब-गजब ढंग थे,
आमजन हर ओर से तंग थे
बांटो और राज करो
यही उनका मूल मंत्र था,
प्रलोभनों का दौर था
भारत का जन मौन था,
उभरा एक सितारा
भारत माँ की आँखों तारा,
दुलारा बोस सुभाष
जिसने जगायी नयी आस,
उखड़नें लगी शासकों की साँस
बोला,
‘तुम रक्त दो,
आजादी हम देगें,’
बोले बोस
आया लोगों को
कुछ होश,
बढ़ने लगी चेतना
आगे आये अनगिनत
जवान,
दिया बलिदान
आज़ाद हिंद फौज बनी,
अलग से महिलाओं
की सशक्त हथियार युक्त
टोली बनी,
फिरंगियों की चूलें हिलीं
अहिंसा वादियों को
लगा उनका अस्तित्व,
खतरे में है
अंतर्विरोध भी उभरे,
घर के भेड़ियों ने भी
अपनी रोटी सेंकी,
बोस को गुमनामी
की जिंदगी जीनी पड़ी,
धन्य थे सुभाष
जिन्होंने आज़ादी
की रखी आधारशिला,
क्रांति की फूटी ऐसी
चिंगारी,
अंततः फिरंगियों
की टोली हारी,
फिर भी सत्तालोलुपों
ने हथियायी विभाजित
आज़ादी,
देश की पुंगी बजा दी,
जिसे आज भी हम
भोग रहे हैं,
स्वर्ग से आज भी
क्रांतिकारी खून के
आँसू रो रहे हैं,
आज के पथ भ्रष्ट
नेता हमें चूस रहे हैं।
देश का धन मूस
रहे हैं॥

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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