कुल पृष्ठ दर्शन : 290

धरा

डॉ.नीलम कौर
उदयपुर (राजस्थान)
***************************************************
विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष……………


अनादि,अनंत,अदृश्या
अकाट्य,अभेद्य,अछेद्या
अपरुपा के मनः प्राण की,
शून्य से परिकल्पित चमत्कार है
ये ‘धरा।’

सृजन-संहार की अदभुत
क्रीड़ा-स्थली,
नवग्रहों में सनातन जीवंत
ईश्वर की सुंदर कल्पना की,
सचेत प्रतिकृति है।

अंबु,अनल,अनिल,अवनि-अम्बर
के पंचभूत तत्वों से निर्मित
देवो की पुण्य क्रीड़ा-स्थली,
परमेश्वर का अनूठा परम धाम है
ये ‘धरा।’

अटल,अचल,अविरल-अचला
पाक-पवित्र,पुण्य गंग-जमुना सलिला,
प्रवाहिनी-रत्नगर्भा नील सगर पद प्रक्षालिनी
शीश स्वर्ग-ताज धारिणी,
एक में अनेक भाव-भान प्रदायिनी है
ये ‘धरा।’

सहनशीला,सहिष्णु,संप्रभुता का संगम,
शौर्य,शील,सभ्यता,संस्कृति,मान-मर्यादा
की अनुपम भाव-भूमि,सूर्य,चाँद-तारों
से सुसज्जित,प्रतिपल नाना रुपा धारित
प्रकृति की रुपायित है,
ये ‘धरा।’

गौतम और कबीर,नानक और रैदास,
सूर,तुलसी,जायसी,मीरा की भक्ति-भूमि
प्रेमचंद,प्रसाद,दिनकर,जैनेंद्र,अज्ञेय,
महादेवी,निराला,पंत टैगोर से नाना स्वर्णिम
साहित्याक्षरों से दमकती है,
ये ‘धरा।’

सतत् परिवर्तन संप्रेषित,
सनातन सत्य,सार्वभौम
सत्यमेव जय नाद निनादित,
तमसो मा ज्योति गर्मित
अंहिसा परमोधर्मा ग्रहित,
बुबुक्षा से मुमुक्षादायिनी
मोक्षदायिनी है,
ये ‘धरा’॥

परिचय – डॉ.नीलम कौर राजस्थान राज्य के उदयपुर में रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। आपका उपनाम ‘नील’ है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। आपका निवास स्थल अजमेर स्थित जौंस गंज है।  सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। अन्य सामाजिक संस्थाओं में भी जुड़ाव व सदस्यता है। आपकी विधा-अतुकांत कविता,अकविता,आशुकाव्य और उन्मुक्त आदि है। आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना और भावनाओं के ज्वार को शब्दों में प्रवाह करना ही लिखने क उद्देश्य है।

Leave a Reply