उदयपुर (राजस्थान)
मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………
मंदिर में माँ का पूजन,
घर में माँ मजबूरी है।
नौ मास की पीड़ा सहती,
फिर भी बेटों की हठी है।
पत्थर की मूरत पर
नाक रगड़ती,
माँ बनने की असीम
आकांक्षित,पर सासू माँ
घर पर भारी है।
जिन आँखों का तारा था,
जीवन का राजदुलारा था।
वही माँ अब बोझ बनी है,
आँखों की किरकिरी हुई है।
पेट काट कर,भूखे रहकर,
तोड़ निवाले देती थी।
खुद गीले में रहकर जिसको,
सूखा आँगन देती थी।
वही बेचारी एक निवाले को,
तरस गई।
महलनुमा मकां के,आँगन
में इक कोने को तरस गई।
चोट जरा-सी लगती थी,
दर्द से बेहाल माँ होती थी।
आज जमाने की चोटों से,
पीड़ित माँ बैठी है।
मजदूरी कर-करके,
बेटे को साहब बनाया था
पर जीते जी बेटे ने,
माँ को जिंदा मार दिया।
गम की गठरी बनकर माँ,
दहलीज लांघ उस घर की
जिसको बडे़ अरमानों से
सजाया था,
मंदिर की चौखट आ गई।
जिंदा जिस्म लिए
साँसें गिनती,
लाचार माँ,माँ के
दरबार में आ गई।
पर माँ बनने की आस लिए,
बहू को फिर वो माँ एक बार
फिर रुला गई॥
परिचय – डॉ.नीलम कौर राजस्थान राज्य के उदयपुर में रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। आपका उपनाम ‘नील’ है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। आपका निवास स्थल अजमेर स्थित जौंस गंज है। सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। अन्य सामाजिक संस्थाओं में भी जुड़ाव व सदस्यता है। आपकी विधा-अतुकांत कविता,अकविता,आशुकाव्य और उन्मुक्त आदि है। आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना और भावनाओं के ज्वार को शब्दों में प्रवाह करना ही लिखने क उद्देश्य है।