ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे हैं, हम सरीख़े भी बेसहारे हैं। मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये, है आरज़ू कि फिरते मारे हैं। न आब है तलाश दाने की, ये आदमी तो बेसहारा है। ज़ख्म सिले न ख़रोंच देता जो, कहें भी कैसे वो हमारा है। ज़ुनून ले कर चला है,नज़र फ़लक … Read more

ऐरों-गैरों को अपनाना पड़ता है

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचनाशिल्प:वज़्न-२२२२ २२२२ २२२२ २२२) ग़र्ज़ पड़े तो किसको क्या कुछ यार बनाना पड़ता है। खुदग़र्ज़ी में ऐरों-गैरों को अपनाना पड़ता है। नाकारों को साहब कहना और सियासत में जाना, जोर जमाना उनका है तो संग निभाना पड़ता है। पेंचोख़म में आज जमाना माहिर है अब संभलो भी, ज़र्रे-ज़र्रे में रहजन … Read more

शहादत को रखेंगे याद

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचना शिल्प:बह्र/अर्कान-१२२२×४-मफाईलुन-मफाईलुन-मफाईलुन-मफाईलुन) शहीदों की चिताओं में लगें मेले मुनासिब है। शहादत को रखेंगे याद मुमकिन यार वाज़िब है। रखें महफूज़ सरहद को यकीनन जान से खेले, जमाना ये कहे सैनिक बड़ा अय्यार साहिब है। शहादत भी वतन के वास्ते ज़न्नत हुआ करती, तलब हो जब हिफाज़त की वही तो यार … Read more

हम बड़े ना तुम,बड़ा रब

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचनाशिल्प:वज़्न-२१२२,२१२२,२१२२,२ अर्कान-फाइलातुन×3-फा.) हम बड़े ना तुम,बड़ा रब,ख़ानदानी है। डींग मारें हम भले वो आसमानी है। मौत आती सामने जब,बच न पायें तब, ज़िन्दगी अपनी कहें,दो बूंद पानी है। ठोकरों के बाद भी जो,यार संभले ना, खामखां वो गिर रहे ये ज़िन्दगानी है। यार कोई आसमां सा,है नहीं सच ये, देखने … Read more

अंजुरी भर

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** भावनाओं ने कहा तो अंजुरी भर गीत ले कर आ रहे हम। विघ्न भी हैं सघन राह में निशिचर खड़े आघात को तम। संगठित निशिचर हुए और भद्रजन में द्वेष है, बुद्धि का अभिमान अतिशय नेह न अब शेष है। भावनाएँ शून्य हैं अब वो स्वयंभू बन गये खुद, बुद्धि … Read more

गीत को जीते रहे

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** आचमन की तरह जो पीते रहे हम,ज़िन्दगी भर गीत को जीते रहे हम। पालने से गीत का संग,मातु के वात्सल्य में,माँ क्षीर संग पीते रहे हम। शब्द पहला गुनगुनाया,माँ को माँ कह कर सुनाया, माँ ने अतिशय प्रीति से पुचकार सीने से लगाया। मेरे होने से मिला था मान माँ … Read more

चाहिए है समझना बराबर

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचनाशिल्प:वज़्न-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-फऊलुन×८) बड़ी बात ये है कि फुटपाथ में जो उन्हें चाहिए है समझना बराबर। तक़ाजा यही हो न उनसे हिक़ारत लगाएं भी दिल से ज़मीं से उठाकर। जो मुमकिन नहीं वो करें हर्ज़ क्या है रिवायत पुरानी जो मर सी चुकी हैं, हटा दें उन्हें यूँ नहीं फायदा कुछ जो … Read more

ज़िन्दगी गुनगुनाने लगी

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** नाम खुद की हथेली पर उनका लिखा,तब से बेचैन वो नींद जाने लगी। उनसे पूछा नहीं पर पता चल गया,ज़िन्दगी नेह में गुनगुनाने लगी। ज़ादुई रंग शायद है दिल में चढ़ा, अड़ गये हाथ उनका वो कल थामने। बात ऐसी हुई खाइयाँ थी बहुत, साथ में ऐसा कुछ था कुँआ … Read more

बेसबब ग़ुस्ताख़ियां

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचना शिल्प: वज़्न-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,अर्कान-फाइलातुन×३-फाइलुन) बेसबब है की नहीं ग़ुस्ताख़ियां अक्सर सुनो। जाम बिन आई नहीं मदहोशियां अक्सर सुनो। ज़िल्लतों के बाद हासिल ना ज़मीं औ ना फलक़, ना मिलें क़िस्मत बिना ऊंचाइयां अक्सर सुनो। हर बसर तनहा कलंदर हो सके मुमकिन नहीं, जो बने उसको मिलें तनहाइयां अक्सर … Read more

जरूरी है…

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** आम को अब ख़ास होना भी जरूरी है। इसलिए अब आज रोना भी ज़रूरी है। सब मिले खैरात में मुमकिन नहीं शायद, कर मशक्कत बोझ ढोना भी जरूरी है। काटना है फ़सल ग़र इंसानियत की तो, फिर लहू से सींच बोना भी ज़रूरी है। ग़म जहां के भूल सपने देखना … Read more