ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे
प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे हैं, हम सरीख़े भी बेसहारे हैं। मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये, है आरज़ू कि फिरते मारे हैं। न आब है तलाश दाने की, ये आदमी तो बेसहारा है। ज़ख्म सिले न ख़रोंच देता जो, कहें भी कैसे वो हमारा है। ज़ुनून ले कर चला है,नज़र फ़लक … Read more