रिश्ते नहीं जमीनी

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष……….. एक कमरे में रहते हैं व्यक्ति चार, चारों अलग फोन पर बतियाते हैं। एक-दूजे से बात नहीं हो पाती उनकी, अपनी दुनिया में व्यस्त वो हो जाते हैं। फिर धीरे से उठ कर ‘गुड नाइट’ कहते हैं, ‘सुबह मिलेंगे’ कहकर हाथ हिला जाते हैं। मैं … Read more

नहीं बनना मुझे निरर्थक

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* सुबह-सवेरे अलसाई-सी मैं, ज्यों ही खोला दरवाजा दरवाजे के पास पड़ा, एक फूल था प्यारा। बेहद सुंदर फूल, इधर-उधर नजर दौड़ाई… लेकिन कोई काम न आई। फिर सोचा- तुलसी के गमले बिठा दूं, भगवन् के चरणों में सजा दूं या अपनी वेंणी में लगा लूं! उसने मेरे अंतर्मन की बात … Read more

हाय! ‘कोरोना’

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* चीन से हाय ‘कोरोना’ आया है, कितनी तबाहियां लाया है। सारा विश्व हिला रख दिया, अच्छा आतंक मचाया है। सभी फोन पर कुशल-क्षेम, पूछ रहे हैं एक-दूजे की। सफाई,सुरक्षा,संयम,सर्तकता, सबने सबको समझाया है। कल तक जो बड़े व्यस्त थे, अपनी धुन में रहते थे। आज सभी वह साथ-साथ हैं, घर … Read more

प्रकृति की व्याकुलता

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष…….. एक शाम प्रकृति को देखा, मैंने गुमसुम-गुमसुम। रहा ना गया,बोल पड़ी मैं- “हे! प्रकृति बावरी, क्यों है उदास री ? होंठों पर संत्रास लिए, आँखें कहने को उतावली। पंच महाभूत तेरे अधीन, फिर क्यों व्यतिरेक ? तू प्राणदायिनी, शक्तिशालिनी, जीवन का आधार विधाता का पावन … Read more

वटवृक्ष

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* नदी किनारे एक महात्मा रहते थे। एक दिन सुबह-सवेरे जब वे कुटिया से बाहर निकले,तो उन्होंने देखा एक छोटा-सा पौधा लहलहा रहा है। उन्होंनेे उस पौधे के चारों तरफ कंटीली झाड़ियों की बाड़ लगा दी,ताकि कोई जानवर उसे हानि न पहुंचा सके। महात्मा उसे रोज पानी से सींचते और थोड़ा-बहुत … Read more

व्यर्थ ही है

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* चलना चाहता था चल न सके जाने क्या सोच हटे पीछे, दो कदम भी अब चल न सके- तो दौड़ लगाना व्यर्थ ही है। नाहक हँसते फिरते थे हम हँसना चाहा था हँस न सके, अब बात-बात पर हँसते हैं- तो स्वंय को हँसाना व्यर्थ ही है। जीवन में लक्ष्य … Read more

सरकार गिर गई

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* बलवंतसिंह जल्दी-जल्दी में हांफता-सा आया और बोला,-“सरकार! सरकार! माँ सरकार गिर गई।” यह कह कर वह उल्टे पांव लौट गया। नेताजी नाश्ता कर रहे थे,जोरों की भूख लगी थी। नाश्ता देरी से लाने पर उन्होंने किसना को भी डांट लगा दी थी,पर अभी, ‘सरकार गिर गई’ कहने से उनकी पूरी … Read more

कामवाली बाई

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ******************************************************************************************** “मम्मी! मेरा रुमाल,कल ही तो मेज पर रखा था। आज नहीं है।” शानू तमतमाई-सी बोली। “ओह! तुम्हें कभी मिला है जो आज मिलेगा,ठिकाने पर रखो तब न।” मैं बड़बड़ाती रसोई से बाहर निकली और दूसरा रूमाल अलमारी में से निकाल कर दिया। “जल्दी दो,देर हो रही है।” वह रूमाल मेरे … Read more

सच…चिड़िया रानी…

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ******************************************************************************************** दिन भी सूना, रात भी सूनी चुप! अकेली चिड़िया रानी। सजल नयन से, बाट जोहती रही सोचती चिड़िया रानी…l कितने संघर्षों से पाला, उन्हें खिलाया मुँह का निवाला शीत-लहर में पंख पसारे, छाती में मैंने दुबकाया। खाना-पीना चलना-उड़ना, धीरे-धीरे उन्हें सिखाया। फिर वे एक दिन फुर्र उड़ गये, आने की … Read more

शोर मचाते आये बादल

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ******************************************************************************************** घूम-घूम के आये बादल, झूम-झूम के आये बादल हर्षित मन है छाये बादल, शोर मचाते आये बादल। मेंढक ने छाता जो खोला, तब चींटी का मन है डोला पत्तों की एक नाव बनाई, खूब सबको सैर कराई। पानी कहां छिपाये बादल, शोर मचाते आये बादल॥ भालू के घर भरा है … Read more