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गीत सृष्टि पा लेती हूँ मैं

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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काव्य संग्रह हम और तुम से


जब तेरे मृदु-वचनों से,
थोड़ा रस पी लेती हूँ मैं।
तुम मानो ना मानो प्रियतम,
गीत सृष्टि पा लेती हूँ मैं।

बरखा की छम-छम बूंदों में,
लगता कर-स्पर्श तुम्हारा।
सच बोला तो झूठ लगेगा,
रोम-पुलक पा लेती हूँ मैं।
गीत-सृष्टि पा लेती हूँ मैं…

जब पुरवा ने छेड़ी सरगम,
याद आया तेरा आलिंगन।
नव-किसलय के नवल-हास में,
मृदु-स्मृति पा लेती हूँ मैं।
गीत-सृष्टि पा लेती हूँ मैं…

भीगे सजल तुम्हारे नयना,
सागर से निस्सीम छलकते,
उन्हीं पावन देव-दीप में,
नेह- दृष्टि पा लेती हूँ मैं।
गीत-सष्टि पा लेती हूँ मैं…

यादों की सरसाती लय पर,
मेरे स्वर में प्यार तुम्हारा।
जब छा जाता इस भूतल पर,
प्रणय-दर्द पा लेती हूँ मैं।
तुम मानो ना मानो प्रियतम,
गीत-सृष्टि पा लेती हूँ मैं॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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