प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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मेरे दौर में एक गाना गूंजता था,जो प्राण साहब पर फिल्माया गया था-“कस्मे- वादे प्यार-वफ़ा सब वादे हैं,वादों का क्या ?”। इसी तरह से एक और गाना इसके बाद फ़िजां में गूंजा था-“पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए।” तो ये गाने सुनकर मैंने पक्की धारणा बना ली थी कि कोई कुछ भी कहे पर हक़ीक़त में यह ज़माना हवा-हवाई है ।आपको कोई काम करना हो और यह डर हो कि लोग क्या कहेंगे,तो आप लोगों को सहमत करने,और ख़ुद को सही सिध्द करने के लिए बहाने गढ़ लीजिए,पर इसके लिए आपको बहाना बनाने की कला में माहिर होना पड़ेगा ।
एक मुहावरा भी तो चलता था,अभी भी चलता है कि-“न नौ मन तेल होगा,न राधा नाचेगी।” वास्तव में यह ज़माना बहानों का ही है,और जो शख़्स जितना बड़ा बहाना बनाने में सक्षम होता है,वह उतना ही बड़ा सुपर हिट सिध्द होता है। पार्टियां अपने एजेंडो में तो बड़ी-बड़ी बातें करती हैं,पर काम कुछ नहीं करतीं,और फिर कह देती हैं-“अरे भाई वो तो जुमला था,तुम जुमले को सीरियसली काहे ले बैठे। अब ले बैठे,तो यह तुम्हारी ग़लती है।” बस वादे से मुक्ति मिल गई।
अगर आपको अपनी नीतियों के गुणगान करने हों,तो खुलकर ख़ूब बखान कीजिए,और फिर कह दीजिए कि नीतियों में कोई कमी नहीं थी,बस वो तो विपक्षियों ने गड़बड़ कर दी,नहीं तो सारे देश का नक्शा बदलने ही वाला था। भैया,सच्चाई तो यही है कि अगर आपको आगे बढ़ना है तो नित- नये बहानों को ईज़ाद करने में पूर्णता (निपुणता) हासिल कीजिए,नहीं तो घर में बाईजी और ऑफिस में आईजी मतलब आपके बॉस आपका जीना मुहाल कर देंगे। वैसे जो शख़्स बहाने बनाकर दूसरे पर दोष मढ़ने में पारंगत हो जाता है,वह तो ‘पद्मश्री’ का हक़दार भी हो जाता है। घर और ऑफिस में लेट होने पर बीवी और अफसर से डांट खाने से यदि आपको बचना है,तो बहाने बनाने में प्रशिक्षित हो जाइए। वैसे अगर आपको बहाने बनाने में महारत हासिल करनी है,तो नेताओं का आभार सहित अनुसरण कीजिए। 7फिल्मकारों की शरण में जाना भी फायदेमंद हो सकता है,क्योंकि जब उनकी घटियातम् फिल्म (जिसका असफल होना पहले से ही तय था) सुपर फ्लॉप हो जाती है,तो वे जनता की मानसिकता पर सारा दोष मढ़कर अपने नाक़ारापन से सहज मुक्ति पा जाते हैं।
वास्तव में,बहाना बनाने के लिए चतुराई की ज़रूरत होती है। वैसे बहानेबाज़ी का काम उतना आसान नहीं होता है,जितना समझ लिया जाता है। बहानेबाज़ी के लिए ज़बरदस्त विश्वास की ज़रूरत होती है। इसकी कमी के चलते आपके बहाने की हवा भी निकल सकती है,आपकी पोल खुल सकती है,और आपकी भद्द पिट सकती है। वास्तव में,बहानेबाज़ी के लिए लम्बे अनुभव की ज़रूरत होती है। यह सार्वजनिक सत्य है कि आज के दौर में जो जितना बड़ा बहानेबाज़,वह उतना बड़ा कामयाब।
तो,मेरा तो आपको यही मशविरा है कि नये-नये बहाने गढ़ने और फेंकने का तज़ुर्बा हासिल कीजिए, और कामयाबी की राह पर आगे बढ़ जाइए। बहाने की बात ही और है जनाब ।
परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।