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अदभुत गणतंत्र का श्रृंगार

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष………

हे माँ भारती,ये तेरा अदभुत गणतंत्र का श्रृंगार,
शीश झुका तेरे चरणों में,मैं नमन करूँ बारम्बार।
उन्नीस सौ तीस में किया था जो लक्ष्य संकल्पित,
छब्बीस जनवरी पचास को सपना हुआ साकारl
हे माँ भारती…

आजाद हुआ वतन हमारा,मिला हमें संविधान,
अंग्रेज भागे दुम दबाकर,सुनकर हूँकार-ललकारl
आजादी मिली जो हमें,फिर लौटा महान गौरव,
अपनी सरकार,अपना शासन,का मिला अधिकारl
हे माँ भारती…

विशाल लोकतंत्र,अजेय गणतंत्र है यह महान,
हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,सबमें भरपूर प्यारl
लाल किले पर फहराता देखे,दुनिया ये तिरंगा,
राजपथ पर इस दिन,गौरव गाथा की बहारl
हे माँ भारती…

प्रकृति ने भी ऊकेरे हैं यहाँ,अनुपम भव्य चित्र,
हिमालय,हिन्द सागर,नदी,पर्वत और थारl
अनेकता में एकता,विविधता में अखंडता यहाँ,
दुनिया का सिरमौर है,सोन चिड़िया का अवतारl
हे माँ भारती…

कृषि में है आत्मनिर्भर,सबसे बड़ा औद्योगिकृत,
बहुआयामी सामाजिक आर्थिक प्रगति का त्यौहारl
ज्ञान-विज्ञान में अव्वल हम,खेलों में भी अग्रणी,
शांति दूत,क्रांति दूत,भारत को देख रहा संसारl
हे माँ भारती…

दुश्मन छुप चूके हैं,अपना मुँह छुपा कर मांदों में,
भयभीत कांप रहे हैं,अब तो यहाँ घर के भी गद्दारl
हर भारतवासी का शीश तना है,छाती है चौड़ी,
शान से,धूमधाम से,गणतंत्र दिवस मने हर बारl
हे माँ भारती…॥

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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