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‘ये शब्द गीत मेरे’ आमजन की जिजीविषा के स्वर

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा
ग़ज़ियाबाद(उत्तरप्रदेश) 
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मनुष्य ने शब्दों का संसार भले ही स्वयं रचा है,परन्तु शब्दों के रचना-विन्यास की अनुभूति और अभिव्यक्ति की सामर्थ्य तो उसे उस अदृश्य शक्ति ने दी है,जिसे हम ईश्वर के रूप में सम्बोधित करते हैं। शब्दों के माध्यम से मस्तिष्क में उठ रहे उदवेदनों या फिर उद्बोधनों की रचना या सामर्थ्य ईश्वर की अनुमति के बिना सम्भव नहीं है। यदि ऐसा न होता तो मनुष्य के अतिरिक्त,जितने भी जीव हैं,वे भी तो अपनी वेदना को कोई भाषा,बोली या शब्द-संसार दे लेते और आपस में या फिर हमारे साथ अपनी संवेदनाओं को साझा भी करते।
आप कहेंगें अन्य अनेक जीव अपने ढंग से अपनी संवेदनाएं आपस में भी और हम तक पहुँचाते तो हैं ही। हाँ ! यह सत्य है,परन्तु उनके विनिमय की सीमाएं इतनी पुख्ता हैं कि वे उससे बाहर नहीं जा सकते। केवल मानव ही वह जीव है जिसे ईश्वर ने वह असीम सामर्थ्य दी है कि वह शब्दों का ऐसा अनंत संसार रच-बुन सकता है जिसके माध्यम से अनेक बार असम्भव को भी संभव में परिवर्तित किया जा सके। उसके पास शब्द वे औजार हैं, जिनका प्रयोग करके वह पत्थरों में भी संगीत के स्वरों का प्रस्फुटन करने की क्षमता अर्जित कर लेता है। शब्द मानव द्वारा किसी भी सृजन का मूल स्रोत हैं। उन्हीं शब्दों के असीम स्रोत को कवि सतीश गुप्त(कानपुर,उप्र) ने अपने गीतों के रूप में जीवन के सौंदर्य शास्त्र में परिवर्तित करते हुए ‘ये शब्द गीत मेरे’ की रचना कर डाली है। इन गीतों से होकर गुजरते हुए मानव-मन को सृष्टि के सुन्दरतम रूप की अनुभूति होने लगती है-
‘जो दर्द मिले मन को,ये ही सहलाते हैं।
एकान्तक पीड़ा में,ये धीर धराते हैं॥’
कवि का हृदय यहीं नहीं रुकता,बेताबी से भरा उसका सौंदर्यबोध आगे कहता है-
‘सुंदरता ने खुल कर लिख दी/जैसे एक किताब/पृष्ठ-पृष्ठ पढ़ डाला मैंने/फिर भी मन बेताब।’
कवि वैश्विक कोलाहल से दूर अदृश्य एकांत में अपने अकेलेपन से बातें करता है। वह उन परछाइयों में अपना प्रतिबिम्बित सहचर पाने को बेताब है,जिसमें उसे अपना उद्देश्य मिल सके। वह उस परिदृश्य से अवगत होना चाहता है,जिससे वह सदियों की दूरियां तय करके अपने वर्तमान स्वरूप को पा सका है-
‘इंद्रधनुष की कल्पना,इंद्रधनुष के रंग/
इंद्रधनुष की धानक से दे रहे प्रत्यंग/
मन मयूर का झूमना अंगड़ाई के नाम/
दूर कहीं बजता रहा मधुर-मधुर संगीत/
कसक बावरी जानती निर्मोही की प्रीत।’
कवि उदासी को अपना गंतव्य नहीं मानता। वह मौन का सहचर तो है,परन्तु उसका मौन मुखर भी है,ठीक उसी तरह जैसे कोई शिशु माता के गर्भ में रहते हुए अपने मौन के माध्यम से अपनी माता को सारी रहस्यमय यात्रा वृत्तांतों का विवरण दे रहा हो कि,किस तरह वह अपनी अनंत यात्राओं के असंख्य पड़ाव पार करके उस तक आ सका है और अब उसे इस माँ के आँचल की शीतल छाया की सुरक्षा चाहिए-
‘जीवन की गाँठ नहीं खुलती/बिन मांगें भीख नहीं मिलती
नामों पर जीने-मरने से/जीवन की साँस नहीं चलती।’
कवि सतीश गुप्त ने अपने शैशव से लेकर जीवन के सत्तरवें वसंत तक की संघर्षमय यात्रा के अनुभवों को जन-मानस की विकास यात्रा में परिवर्तित करते हुए गीतों में आध्यात्मिकता का काव्यात्मक समावेश किया है। ये गीत हमें उदासी से निकालते हैं,नकारात्मकता को पराजित करके सकारात्मक मनोदशा की ओर ले जाते हैं। कवि के ये गीत केवल स्वयं उसी तक सीमित नहीं रहते। वे मानव मात्र के लिए शब्दों के महत्व और उसके जीवन को समग्र रूप में दिशा देते प्रतीत होते हैं। संग्रह के हर गीत में आम-जन की जिजीविषा, लगभग उसी की भाषा में स्वर देती दिखाई देती है।
गीत काव्य ‘ये शब्द गीत मेरे’ सिद्ध करता है कि काव्य-रचना निराश मन के सफल उपचार का माध्यम भी हो सकती है। ईश्वर ने अपने कुछ लोगों को शब्दों के रूप में एक अलौकिक सामर्थ्य दी है,जिसके माध्यम से वह ईश्वरीय आदेशों व इच्छाओं को मात्र मानव ही नहीं,सम्पूर्ण जड़-चेतन के कल्याण के लिए उपयोग में ला सकता है। ऐसा विश्वास है कि,यह एक पठनीय काव्य संग्रह सिद्ध होगा। कवि के इस प्रयास को साधुवाद।

परिचय–सुरेंद्र कुमार अरोड़ा की जन्म तारीख ९ नवम्बर १९५१ एवं जन्म स्थान-जगाधरी (हरियाणा)है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद स्थित साहिबाबाद में स्थाई रुप से बसे हुए श्री अरोड़ा को हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर(प्राणी विज्ञान)और बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षा निदेशालय दिल्ली (प्रवक्ता,२०११ में अवकाश प्राप्ति)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप स्थानीय परमार्थिक दवाखाने से जुड़कर सेवा करते हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी,लघुकथा एवं कविता है। देश की बहुत-सी साहित्यिक पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन जारी है। संग्रह में आपके खाते में-आज़ादी(लघुकथा संग्रह, १९९९),विषकन्या(२००८),तीसरा पैग (२०१४),उतरन लघुकथा संग्रह (२०१९) सहित बन्धन मुक्त(कहानी संग्रह)आदि हैं। हिंदी अकादमी (दिल्ली)सहित कई न्यास और संस्थान द्वारा आपको अनेक साहित्य सम्मान दिए गए हैं। विशेष उपलब्धि-हिंदी अकादमी से पुरस्कृत होना है। लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्ट व्यवस्था पर कलम का प्रहार तथा मानवीय रिश्तों की पड़ताल करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक -प्रेमचंद जी,तुलसीदास जी,सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ निर्मल वर्मा, नरेंद्र कोहली हैं। प्रेरणा पुंज-स्व.प्रो. सेवक वात्स्यायन(कानपुर विवि)हैं। आपका सबके लिए सन्देश-भारत देश सबसे पहले है,भ्रष्टाचार मुक्त देश का निर्माण करना है। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-कहानी एवं लघुकथा है।

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