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हम तुम

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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तुम्हारी हथेलियों में मेरा हाथ होता है,
सुनहरी रात और दिन रुपहला होता है।

जाने क्या-क्या एहसास,कैसा आभास होता है,
आँखों में भर आते सपने,चैन तो कहीं जा सोता है।

तुम,हाँ तुम ही तुम,संसार साथ होता है,
जब तुम नहीं होते,सब हो के मन रोता है।

सोचती हूँ कभी-कभी,गैर कैसे भा जाता है,
अब तक अपने थे,मन उसे कैसे खोता है।

अदृश्य डोर मन बंधा,बन्धन कहाँ होता है,
बांधे सिंदूर गजरा,मन कंगन का गोता है॥

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