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आत्मा को ही हमने मारा

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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देख अपनी विजय को,रावण मुस्कराता है,

उत्सव अपनी विजय का,वह खूब मनाता है।

अधर्म ने आज धर्म को,छल से मारा है,

रावण जीत गया है,राम आज हारा है।

वीर का तेज समक्ष,अन्याय के झुक गया है,

दीपक का स्नेह यूँ,तम में ही चुक गया है।

मानवता का कथन,पूर्णत: व्यर्थ हुआ है,

सच दुर्बल तथा झूठ,कितना समर्थ हुआ है!

कलयुग रावण से प्रकट,अपने-आप हुआ है,

धरा पर भारी मानव,का ही पाप हुआ है।

निर्भीक होकर रावण,नभ में हुंकारा है,

रावण जीत गया है,राम आज हारा है।

मानवता हुई अब,युगों से पुरानी है,

झूठी सिद्ध हुई राघव की यह कहानी है।

जब मन को हमने,राक्षस ही बना दिया,

स्वयं ही अधर्म को,विजयी हमने बना दिया।

यही तो पाप हम पर,आज राहु-सा छाया है,

हमने खुद ही तो,श्री राम को हराया है।

अपनी आत्मा को ही,हमने आज मारा है,

रावण जीता गया है और राम हारा हैll

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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