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आखिर हिंदी को ‘गौरव’ कब ?

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जी.एस. अंयगर व के.एम. मुंशी की अनुशंसा पर १४सितंबर १९४९ को हिंदी को संघ सरकार की भाषा के रूप मे प्रतिष्ठित कर ‘राजभाषा’ के रूप मे मान्यता दी गई,तभी से प्रति वर्ष १४ सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ तथा सितंबर महीने को ‘हिंदी मास’ के रूप में मनाया जाता है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब राष्ट्र गीत,राष्ट्रीय ध्वज,राष्ट्रीय पशु,राष्ट्रीय पक्षी,राष्ट्रपति, राष्ट्रीय चिन्ह,राष्ट्र गान आदि प्रतीकों में ‘राष्ट्र’ शब्द रखा गया है तो हिंदी को ‘राष्ट्रभाषा’ की जगह ‘राज भाषा’ का नाम क्यों दिया गया ? क्या हम राष्ट्रपति को ‘राज पति’ कह सकते हैं ? क्या राष्ट्र गीत और राज गीत का एक ही अभिप्राय है ? क्या राष्ट्रीय पशु और राजकीय पशु एक ही हैं ? क्या राष्ट्रीय पक्षी और राजकीय पक्षी एक ही हैं ? क्या राष्ट्रीय चिन्ह और राजकीय चिन्ह एक ही हैं ? इस पर विचार करने की जरूरत है।
अगर शब्दों के तर्क-वितर्क से ऊपर उठकर यह मान भी लें कि राजभाषा और राष्ट्रभाषा एक ही हैं तथा हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है,तो फिर हिंदी इतनी उपेक्षित क्यों है ? क्या कोई भी व्यक्ति या राज्य राष्ट्र गीत की उपेक्षा कर सकता है ? क्या कोई व्यक्ति और राज्य राष्ट्र गान की उपेक्षा कर सकता है ? क्या कोई भी व्यक्ति या राज्य राष्ट्रीय प्रतीकों की उपेक्षा कर सकता है ? अगर नहीं तो फिर हिंदी की इतनी उपेक्षा ?
यह बात ठीक है कि संविधान की ८वीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं का अपना महत्व है,तथा सभी के विकास का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए, परन्तु हिंदी को राष्ट्र भाषा के अनुरूप तो गौरव मिलना ही चाहिए।
व्याकरण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हिंदी एक समृद्ध भाषा है और इसमें विश्व भाषा बनने की पूरी विशेषताएं हैं,लेकिन दुर्भाग्य से हिंदी अपने ही देश में उपेक्षित है। आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी हिंदी अपना गौरव पाने के लिए तरस रही है।
आइए,हम और आप सब मिलकर इस दिशा में प्रयास कर हिंदी को उसका गौरव दिलाने में अपनी महती भूमिका अदा करें।

परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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