डॉ. रचना पांडे,
भिलाई(छत्तीसगढ़)
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एक तुम ही हो,
मेरे वजूद के हर हिस्से में
एक सुकून की तरह समाए हो,
मेरी पलकों के हर रोम छिद्र में
मेरे संग तुम आजन्म हो,
बस एक तुम ही हो…
बंद करूं निगाहें तू ही नजर आए,
तेरी चंचल अदा पर दिल बहका जाए।
हाथ थामकर सपनों को मेरे सजाते हो,
जब मन गमगीन हो तो तुम ही नजर आते हो
बस एक तुम ही हो…
ससुराल की मुंडेर पर खुशियों के पिटारे में,
दबी हुई ख्वाहिशों के खुले हर पन्ने में
प्रेम की बारिश और हल्की मुस्कुराहट लिए,
तुम मेरे वजूद के हर हिस्से में
हरी नरम सतह की तरह हो,
एक तुम ही हो…॥