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`कुदरत` से मोदी के दीर्घायु होने की दुआ और `माया` की मंशा…

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ६९वें जन्मदिन पर चौतरफा बधाइयों की बौछार में एक बधाई जरा भीड़ से हटकर थी,और वह थी बहन मायावती की बधाई। उन्होंने पीएम मोदी की लंबी उम्र की दुआ ‘कुदरत’ से की,न कि ‘ईश्वर’ से। इसके लिए वो भक्त द्वारा ट्रोल(लक्ष्य करके अच्छा या बुरा साबित करना)भी हुईं,जबकि मोदी जी ने जन्म दिन का जश्न दत्त मंदिर में माथा टेककर शुरू किया और विकास की बातें कीं। समर्थकों ने उसे ‘प्राकट्योत्सव’ का रूप देने में कसर नहीं छोड़ी। बहरहाल बहनजी ने मोदी को जन्म दिवस की बधाई देते हुए ट्वीट किया कि,आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं और बधाई व दीर्घायु होने की कुदरत से प्रार्थना..! उधर यह भी संयोग रहा कि,मोदी जी के जन्म दिन पर कांग्रेस ने बहनजी को तगड़ा‍ सियासी झटका देते हुए राजस्थान में उनके सभी ६ विधायक अपनी झोली में डाल लिए। इससे तिलमिलाई बहनजी ने कांग्रेस को कोसते हुए कहा ‍कि,इसी वजह से बाबा साहब आम्बेडकर ने नेहरू सरकार से इस्तीफा दे दिया था। व्यक्ति कोई भी हो,अगर उसका जन्मदिन है तो अमूमन सभी बधाइयां देते हैं और उसके दीर्घायु होने की कामना करते हैं। इस बधाई में राजनीतिक,सामाजिक,जातिय या निजी शत्रुता कुछ क्षणों के लिए दरकिनार कर दी जाती है। इस लिहाज से यह मनुष्य की मनुष्य के प्रति और मानव जीवन के प्रति व्य‍क्त की गई शुभकामना है। अर्थात किसी भी व्यक्ति का इस भूतल पर अवतरण एक घटना है और इस घटना का स्वागत किया जाना चाहिए,क्योंकि विशाल मानव आबादी में एक और किलकारी का जुड़ना जीवन चक्र के आगे भी चलते रहने की निशानी और गारंटी है। फिर यहां तो मामला एक प्रधानमंत्री का है और ऐसे प्रधानमंत्री का है,जो हाई प्रोफाइल है। एक ऐसा पीएम जो अपनी धार्मिक आस्थाओं को खुलकर जताता है,बल्कि जिसकी हर अदा अपने-आपमें एक राजनीतिक संदेश लिए होती है। ऐसे मोदी को उनकी धुर राजनीतिक विरोधी जैसी सोनिया गांधी ने भी बधाई दी। ऐसे में मायावती बधाई न दें,यह नामुमकिन था,लेकिन उन्होंने मोदी के उम्रदराज होने की दुआ कुदरत से की न कि ईश्वर से। आम तौर(आस्तिकों में)पर ईश्वर आपको दीर्घायु करे,कहने का चलन है। इसकी वजह शायद यह है ‍कि दुनिया में ज्यादातर लोग अदृश्य ईश्वर की शाश्वत सत्ता को स्वीकार करते आए हैं और इसे ‘अचुनौती’ मानते हैं। यूँ विज्ञान ईश्वर के बजाए प्रकृति को ही सर्वशक्तिमान मानता है। ऐसे में मायावती के ट्वीट का अर्थ यह निकाला गया ‍कि,वे नास्तिक हैं और ईश्वर के बजाए प्रकृति में विश्वास करती हैं। मोदी भक्तों ने बहनजी को तुरंत ट्रोल किया कि मोदी जी के दीर्घायु होने की कामना कुदरत से क्यों,ईश्वर से क्यों नहीं। एक ने सवाल किया कि-क्या ईश्वर कहने में कोई कठिनाई है ? एक ने शंका जताई कि-मायावती प्रार्थना करती हैं क्या ? एक ने गुस्से में यहां तक कहा कि-ईडी व सीबीआई से कुदरत आपको(मायावती)बचा के रखे। यहां सवाल यह है कि मायावती ने मोदी को बधाई क्यों दी और दीर्घायु के लिए कुदरत से प्रार्थना क्यों की ? पहले सवाल का जवाब तो यह है कि उम्र के ६२वें बसंत तक आते-आते मायावती की दलित राजनीति का ‍सिक्का अब घिसने लगा है। वे तय नहीं कर पा रही कि नई ‍परिस्थितियों में वो अपने और अपनी पार्टी के वजूद को कैसे बचाकर रखें। एक तरफ भाजपा उसे खाए जा रही है,तो दूसरी तरफ कांग्रेस निगलने को तैयार बैठी है। ऐसे में मायावती की `दलित राजनीति की गुदड़ी कई जगह से उधड़ने लगी है। हालांकि,बहनजी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं खत्म नहीं हुई हैं,लेकिन सत्ता की राह पर आगे बढ़ने का ‘कुदरती’ रास्ता उन्हें सूझ नहीं रहा। वो कभी भाजपा को गरियाती हैं,तो कभी उसके करीब जाती दिखती हैं। कभी वो कांग्रेस से गलबहियां करती लगती हैं,तो कभी सियासी रंजिश की पैकेजिंग ‘महागठबंधन’ के रूप में करती ‍लगती हैं। ऊपर से मोदी सरकार ने अपने ‘थर्ड‍ डिग्री’ फार्मूले के तहत मायावती पर ईडी और सीबीआई का शिंकजा कस रखा है। कुछ लोगों का मानना है कि,इसी के चलते बहनजी के पास मोदी जी को बधाई देने के अलावा कोई चारा नहीं था। सवाल यह भी है कि बहन मायावती किसी धर्म को मानती भी हैं या फिर वो नास्तिक हैं ? अर्थात किसी भी धर्म में उनका विश्वास नहीं है। अपने ३५ साल के राजनीतिक जीवन में मायावती ने अपनी धार्मिक आस्थाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन कभी नहीं किया,लेकिन यह संदेश जरूर दिया कि वो धार्मिक कर्मकांड में भरोसा नहीं रखतीं। वैसे मायावती जाति से जाटव समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा बाबा साहब आम्बेडकर और मान्यवर कांशीराम की अनुयायी हैं। इस दृष्टि से माना गया कि,वो बौद्ध धर्म को मानती हैं,लेकिन यह धारणा भी तब गलत निकली जब उन्होंने दो बार हिंदू धर्माचार्यों को कहकर चेतावनी दी ‍कि अगर वो नहीं सुधरे तो वे(मायावती)बौद्ध धर्म अपना लेंगी। इसका मतलब यह कि,उन्होंने हिंदू धर्म त्यागा नहीं है। सार्वजनिक रूप से बौद्ध धर्म अपनाने पर बहनजी के सामने‍ दिक्कत यह है कि,जिस दलित समाज का वे अपने को नेता मानती हैं,वो अभी भी बहुतांश हिंदू ही है। बौद्ध धर्म अपनाने पर बहनजी दलितों में भी चुनिंदा ‍जातियों की नेता बनकर रह जाएंगी। मायावती ऐसा कभी नहीं चाहेंगी। धर्म परिवर्तन की धमकियां वो कितनी ही दें,पर सत्ता के ऐरावत पर सवारी के लिए वो हिंदू रहकर बाकी हिंदू जातियों से जुड़े रहने की पतली गली हमेशा खुली रखती आई हैं। विडंबना यह कि मोदी जी का जन्म दिन बसपा सुप्रीमो बहनजी के लिए बुरी खबर ले के आया। राजस्थान में मुख्‍यमंत्री अशोक गेहलोत ने मायावती की पार्टी बसपा के सभी विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल कर अपनी सरकार की नींव पक्की कर ली। इससे बौखलाई बहनजी ने कांग्रेस को गैर भरोसेमंद और धोखेबाज करार दिया। उन्होंने ‍ट्वीट किया ‍कि,यह ‘बसपा मूवमेन्ट’ के साथ विश्वासघात है,जो दोबारा तब किया गया है,जब बसपा वहां कांग्रेस सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दे रही थी।’ बहनजी का यह आक्रोश जायज इसलिए है,क्योंकि राजस्थान का खेल मध्‍यप्रदेश में भी खेला जा सकता है। यहां बसपा के २ विधायक कभी भी कमल नाथ सरकार के साथ जा सकते हैं। वैसे भी बसपा ऐसी पार्टी है,जिसके मतदाता भले प्रतिबद्ध हों,नुमाइंदे सियासी खानाबदोश होते हैं। तो क्या बहनजी की कुदरत से प्रार्थना वास्तव में राजनीतिक बचाव की मोदी से गुहार है ? या फिर उन्हें अब ‘कुदरत’ के करम पर ही भरोसा है ? यह बात अलग है कि ज्यादातर लोग आज भी कुदरत को भी ईश्वर का ही शाहकार मानते हैं…। बहनजी का ताजा ट्वीट उन्हें भाजपा के करीब लाने वाला है,तो क्या कुदरत से मोदी की दीर्घायु की प्रार्थना भावी राजनीतिक शरणागति का संकेत है ? इसमें विरोधाभास यह है कि,अगर मोदी जी को दीर्घायु होने की बहनजी की दुआएं सचमुच लग गईं तो खुद मायावती का राजनीतिक जीवन कितना उम्रदराज होगा, यह सोचने की बात है।

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