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छोड़ गई अग्नि कहानी

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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अग्नि जल-जल खूंखार
भयानक है लपटेंं,
रूप है लाल-लाल
उठती है ऊपर-नीचे।

धुआं परछाई बन उड़ा
पकड़े तो हाथ न आए,
बाँहें फैलाए नील-गगन
घोर अंधियार छाए।

अग्नि के आगोश में
सिमटी मासूमयित,
देह जल गई ज्यों घास
बिलख-बिलख कोख करे रूदन।

कुल के थे वे लाल
घायल हुए हैं जो
भयभीत हुए उनके चित्त,
अग्नि को पास आते देखा।

मौत को किया महसूस
तितर-बितर हुए होश-हवास,
प्राणों पर छा गया संकट
पल में चली गई कई जान।

एक मंजिल बनी मौत घर
तब्दील हुई अंगारों में,
हथेली पर जान लिए कूदे ज्यों ही
मानो हवा में उड़ रहे हों गुब्बारे।

बचने के लिए भी नहीं बचे
लाल-पीले,नीले-नीले,काले-काले।
बिखर-बिखर राख की ढेरी सिमटी
छोड़ गई अग्नि इतिहास की कहानी॥

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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