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जंगल को अतिक्रमण से बचाने की कोशिश

राधा गोयल
नई दिल्ली
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“तुझे पता है कि, इंडोनेशिया के लोग पर्यावरण के प्रति कितने जागरूक हैं ?”
“आप ही बता दो ना दादी।”
“यह तो पता ही है ना कि, कुछ लोगों की धनलिप्सा ने धरती का इतना दोहन किया है कि, वह अब चीत्कार कर रही है। पर्यावरण संतुलन इस कदर बिगड़ गया है कि, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा तो कहीं आग ने विनाश लीला शुरू कर दी है।”
“हाँ, यह बात तो है। अभी २ साल में ही कैलिफोर्निया में कितनी बार भयंकर आग लग चुकी है और कितने ही लोग वहाँ से घर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे। कितने लोगों के घर जल गए थे।कितनी सम्पत्ति का विनाश हुआ था। विश्व के कई देशों में भी इतना कुछ हुआ था। आपने ही बताया था।”
“बता, मैंने क्या बताया था ?”।
“वह मैं बाद में बताऊँगा दादी। जिसकी इतनी लंबी- चौड़ी भूमिका बांधी थी, पहले वह तो बताओ कि, इंडोनेशिया में हुआ क्या ?”
“अरे वही तो बता रही हूँ। २ मिनट शांति रख। इंडोनेशिया में कुछ अतिक्रमणकारियों ने अवैध रूप से पेड़ काटने शुरू कर दिए। जहाँ के पेड़ काट रहे थे, वह मिट्टी उपजाऊ थी और खेती की जमीन थी। इस समस्या से कैसे निपटा जाए, इस बात पर विचार-विमर्श हुआ। पहले तो केवल पुरुष रेंजर ही इस काम में शामिल होते थे, लेकिन जैसा कि तू जानता है, आदमियों का गुस्सा बहुत तेज होता है। उन्हें समझाना भी नहीं आता। थोड़ी देर में ही उलझ पड़ते हैं और बात बनने की बजाय उलझ जाती है। औरतें थोड़ा धीरज से काम लेती हैं और समझा भी पाती हैं। बस, उन्होंने ठान लिया कि, अब हम भी इस मुहिम में शामिल होंगे। हम भी रेंजर बनेंगे। अब वहाँ की महिलाएँ टीम बनाकर गाँव के जंगलों को बचा रही हैं।
“लेकिन जैसा कि, मैंने सुना है कि इंडोनेशिया मुस्लिम बहुल देश है, तो औरतें किस तरह से ऐसा काम कर पा रही हैं दादी ?”
“बड़ी सही बात पूछी है बेटा। यह सच है कि, इंडोनेशिया मुस्लिम बहुल देश है और वहाँ शरिया कानून लागू होता है और शरिया कानून में ‘आचे’ प्रांत (जहां आजकल महिलाएं रेंजर) में महिलाओं के लिए ऐसा करना वर्जित है। केवल पुरुष रेंजर ही होते हैं, लेकिन ४ साल में बहुत बदलाव आया है। आखिर अपनी ही जमीन पर अतिक्रमण कोई कब तक बर्दाश्त करेगा ? और वैसे भी भले ही इंडोनेशिया मुस्लिम बहुल आबादी वाला देश है, किंतु अभी भी वहाँ की मानसिकता बहुत कुछ भारतीय है।”
“आपका कहना है कि, पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी रेंजर बनने लगी हैं।”
“बिल्कुल सही समझा तू।”
“तो कैसे काम करती हैं ये महिला रेंजर ?”
“महिला रेंजर्स ५ दिन गश्त करती हैं। जंगल को हानि पहुँचाने वालों को बात करके समझाती हैं। महिला रेंजर की टीमें उपजाऊ मिट्टी पर खेती के लिए पेड़ों को काटकर अवैध कब्जा करने वाले लोगों से गाँव के जंगलों को बचा रही हैं। लगभग ४ साल पहले जब से रेंजरों ने गश्त शुरू की है, तब से अतिक्रमणकारियों से सामना होने वाली घटनाओं में गिरावट आई है। जब वे जंगल पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को देखते हैं, चाहे वे किसान हों या लकड़हारे… महिला रेंजर ही आगे बढ़कर उनसे बात करती हैं और स्थिति को काबू करने की कोशिश करती हैं। और पता है इससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी भी होती है।”
“अच्छा”
“हाँ”
“कितनी?”
“५ दिन की गश्त के लिए प्रत्येक रेंजर को लगभग ३ हजार ₹ से थोड़ा ज्यादा मिलता है।”
” बस इतना-सा।”
” बात सुन। न मिलने से कुछ मिलना अच्छा है ना! इससे उनकी पारिवारिक आय में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है। गश्त से आत्मविश्वास बढ़ता है और सांसारिक दैनिक जीवन से छुट्टी लेने का भी यह अच्छा साधन है। इंडोनेशिया की एक और बात बताती हूँ, वह भी पर्यावरण से संबंधित है। इंडोनेशिया के अलोर के आदिवासी पर्यावरण के बड़े रक्षक हैं। वे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए पारम्परिक तरीकों का ही इस्तेमाल करते हैं, ताकि ‘कोरल रीफ’ को नुकसान न पहुंचे।”
“वो कैसे ?”

“वे ५ मिनट तक साँस रोक कर समुद्र में जाते हैं। यहाँ व्यवसायिक मछली पकड़ने के दौरान बाहरी लोग बम विस्फोट करके मछली पकड़ने लगे थे। स्थानीय आदिवासियों ने इसका विरोध करके इस पर रोक लगाई। अब तू ही बता कि, हमसे अधिक जागरूक तो यह लोग हैं जो अपने पारम्परिक तरीकों को बचा रहे हैं और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं, लेकिन अपने-आपको विकसित कहने वाले देश पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं और वही हर वक्त ‘पर्यावरण बचाओ, पर्यावरण बचाओ’ का शोर मचाने में सबसे आगे रहते हैं।”