कुल पृष्ठ दर्शन : 17

You are currently viewing जनता-आयोग करे चोंट

जनता-आयोग करे चोंट

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
******************************************

राजनीतिक क्षेत्र में अवसर और सेवा के लिए राजनेता कितने मर्यादाहीन एवं हल्के जो जाते हैं, यह बात ताजा बयानों से फिर जाहिर हुई है। देश के पुरातन दल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा प्रत्याशी और अभिनेत्री कंगना रनौत पर जो टिप्पणी (मंडी में…) की, उससे कांग्रेस पर ही सवाल उठे हैं और संगठन को बचाव की मुद्रा अपनानी पड़ी है, क्योंकि भाजपा ने इस बात को पकड़ लिया है।
इधर, ऐसी ही विडम्बना भाजपा के सामने भी है, क्योंकि बंगाल में भाजपा नेता दिलीप घोष ने भी स्तरहीन बात कही है। इस बात को कोई दल इसलिए नहीं लपक सका है कि, संगठन ने स्वयं ही श्री घोष को सूचना पत्र जारी करके स्पष्टीकरण माँगा है। इतना ही नहीं, इसे संगठन की परम्परा के विपरीत बताकर नाराजी भी जाहिर कर दी है, लेकिन कांग्रेस ने अपनी नेत्री के लिए ऐसा कुछ नहीं किया है। जनता को इसे समझना चाहिए।
मुद्दा यह है कि, आने वाले दिनों में ऐसा होना और भी स्वाभाविक है, कारण कि लोकसभा मतलब आम चुनाव हैं। एक-दूसरे को हराने और नीचा दिखाने की अंधी होड़ एवं दौड़ में राजनेता तो गिरते रहे हैं, आगे भी गिरेंगे, पर चुनाव आयोग को और ऊँचा उठना होगा। कारण कि, किसी एकाध दल को छोड़ सबमें सत्य, मूल्य, अनुशासन और सभ्यता को राजनीति ने पैरों तले कुचल डाला है, इसलिए आम आदमी पार्टी, सपा, बसपा आदि और इनके जिम्मेदारों से सज्जनता बनाम कार्यवाही की अपेक्षा सोचना तथा करना फिजूल बात है। ऐसी स्थिति में मतदाताओं और आयोग को अपना दिमाग दौड़ाकर ऐसे नेताओं व संगठन को सबक सिखाना चाहिए, क्योंकि देश मतदान से चल रहा है, नेताओं की मनमर्जी से नहीं। सबको इस बात को समझना चाहिए कि, स्वस्थ लोकतंत्र यानि जन-तंत्र में ऐसी गिरावट घातक है और इससे जन मूल्यों की भी गिरावट आएगी। अगर आज मतदाताओं और आयोग ने इस पर निष्पक्षता से ध्यान नहीं दिया, तो यह नासूर देशवासियों के लिए बेहद घातक साबित होगा।
यह भी याद रखने योग्य बात है कि, भारत में अब तक आम चुनाव में किसी भी दल को जनता ने ५० फीसदी से अधिक मतदान नहीं दिया है मतलब लोग इतने सतर्क तो हैं कि, किसी को भी अपना पूरा मालिक नहीं बना रहे हैं। भले ही उस दल की नीति से बहुत खुश हों। इस बात को क्षेत्रीय दल नहीं समझें, पर राष्ट्रीय दल और आयोग तो जानता-समझता है। बस जनता इसे हर चुनाव में समझ कर करारी चोंट करे तो सारे दल और नेता स्वत: ही याचक बनकर घुटनों के बल आ जाएँगे। मतलब निम्न स्तर की टिप्पणी ही नहीं, बल्कि काम भी बंद कर देंगे।
सीधा-सा अभिप्राय यह है कि, जिसने गलत किया और प्रक्रिया अनुसार साबित हो जाए तो उसे पक्षपातरहित सजा दी जानी चाहिए, भले ही वो किसी भी दल का बड़ा नेता हो। इसे अनदेखा करना प्रजातंत्र में जनता की अनदेखी करना है। यह भी याद रखना होगा कि, ज़ब जनता की लम्बे समय तक नेता, आयोग और संगठन भी चिंता नहीं करते हैं तो जनता मौन रहकर भी किसी न किसी न किसी आम चुनाव में उनकी बढ़िया फ़िक्र (सूपड़ा साफ) कर लेती है, पर तब तक देर हो जाती है, जिससे सशक्त लोकतंत्र कमजोर होता है, इसलिए हर चुनाव में बस यही होना चाहिए कि, गलती करने वाले को पक्षपात के बिना जल्दी से दण्डित किया जाए, ताकि देश में जनता यानि मतदाता की प्रतिष्ठा बनी रहे और यही मान आयोग की नींव को मजबूत करेगा। ऐसा होने से ही राजनीतिक दलों में आयोग और जनता का डर बना रहेगा, क्योंकि देश जनता का है, किसी दल की बपौती नहीं। वैसे भी नेता तो आते-जाते रहते हैं, देश का मान सदा ऊँचा और पहले रहना चाहिए। जब आयोग निष्पक्ष होकर डंडा चलाएगा, तो देर से ही, पर सुधार आना तय है।