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धर्म पर फैली है भ्रांति

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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धर्म यानि धारण करना…
सत्य, सहभागिता, सह-अस्तित्व, समानता, सद्भाव, सहयोग, संतोष, समन्वय, शांति और सचराचर सजीव- निर्जीव के प्रति‌ प्रेम, करुणा दया, अपरिग्रह, यह नैसर्गिक धर्म है। इन्हें सृष्टि रचेयता ने मानव, जीव जगत और सृष्टि के विकास-रक्षण-संवर्धन के लिए प्रतिपादन किया। हम भारतीयों ने इन्हीं गुणों को धारण कर धरती में प्रथम और अंतिम जीवन पद्धति को आत्मसात किया है। आदि से अनंत होने से यह सनातन कहलाता है।
सनातन धर्म का प्रवर्तन सृष्टि रचेयता ने स्वयं किया, जिसे हम विधाता या परमब्रह्म कहते हैं। वे अपने कई स्वरूपों में सृष्टि धर्म के अनुसार सुचालित हों, इस व्यवस्था के लिए पृथ्वी पर अपने छटांश में अवतरित हो कर धर्म और न्याय सिखाते हैं, जिन्हें हम विभिन्न रूपों- नामों से पूजते हैं, ताकि हमें ज्ञात रहे, हम उनके बताए- दिखाए मार्ग पर चलें। यही धर्म को धारण करना है।
जो विधाता की बनाई सृष्टि को विनाश या अव्यवस्था की ओर ले जाए, उन्हें साम-दाम- दंड-भेद जिस भी रूप में समझे, समझाया जाए।
आज के परिवेश में कुछ सामयिक विचार-
◾मैं और मेरा धर्म मेरा ईश्वर श्रेष्ठ है, मेरी जीवन शैली उत्तम है।
तुम कहते हो, मेरी श्रेष्ठ है,…हाँ, क्यों नहीं! तुम भी श्रेष्ठ हो, तुम अपने अनुसार मेरी ओर से जीने के लिए स्वतंत्र हो, मेरे धर्म के ‘जीयो और जीने दो’ को धता बताते…।
तुम कहते हो, तुम्हारे विचार अनुसार जीवन जीयूं, मेरी मनाही पर मेरा जीवन- धर्म-परिवार छल-बल-हिंसा से छीन लोगे। तब यहाँ अवतारी संदेश देते हैं, ‘अहिंसा परमोधर्म तथापि धर्म हिंसा हिंसा न भवति…।’
◾कभी-कभी युद्ध और धरती के विनाश को रोकने के लिए वैचारिक और अस्त्रों- शस्त्रों समेत युद्ध करना पड़ता है।
◾भारत संतों की भूमि है, क्योंकि उपरोक्त धर्म को धारण किया हुआ है। परिस्थितिवश-समयानुसार कई मत और परम्परा जन्म लेते हैं, वह उस समय की आवश्यकता होती है। उस मत के प्रवर्तक संत को ही ईश्वर मान परमविधाता से विद्रोह अपशब्द उनके अनुचर-अनुगामी करने लगते हैं। उनकी बुद्धि की लघुता दूर‌ करने हेतु उचित शिक्षा का प्रचार और शिक्षा केंद्र सामाजिक संस्था और सरकार करे।
◾सनातन धर्म प्रति पंथ- संप्रदाय को अपना ही अंग मान अपनी उदारता, महानता विश्व बंधुत्व के कारण उचित सम्मान स्थान देता है। कुछ पंथ-संप्रदाय इस मूल भावना को समझ सह-अस्तित्व के साथ सम्मान देते और प्राप्त करते हैं।
कुछ पंथ-सम्प्रदाय सनातन यानि (सद्भाव, समन्वय) से दूर होकर सनातन के लिए दुर्भाव-वैमनस्यता रखने लगते हैं और अपने पंथ-संप्रदाय प्रवर्तक को ही सृष्टि रचेयता मान बैठते हैं।

◾कुछ तो देश-काल- जलवायु के कारण उत्पन्न परिस्थिति को धर्म मान लेते हैं। कहीं भूमि पर धनिया तक न उगता हो, वो मुर्दे को दफनाएंगे नहीं तो क्या करेंगे। हमारे भारत में उपयोग से अधिक वन लकड़ी है, हम जला देते हैं, और यह सही भी है। भूमि का सदउपयोग और बचत है। इस प्रकार के अनगिनत उदाहरण हैं।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।