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नारी समान दर्जे की अधिकारी

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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अस्तित्व बनाम नारी (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष)…

इसमें शक की गुन्जाईश ही नहीं है कि, भारतीय समाज आज भी पुरुष प्रधान समाज है। यह सही है कि, आजकल बच्चियों को पढ़ाया जा रहा है, अर्थात शिक्षा से वंचित रखने वाली सोच एक तरह से समाप्तप्राय: हो गई है, लेकिन पढ़ाई के चलते जो छूट बच्चियों को दी जा रही है उसके कुछ दुष्परिणाम भी अनुभव हो रहे हैं। अतः आवश्यकता है कि, नारी स्वयं को भी पहचानें और बदले हुए परिवेश में अपने दायित्व को भी पहचानें। चूंकि, आज के बदले हुए माहौल में नारियाँ किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से कम नहीं हैं, इसलिए नारियों को अपने कर्तव्यों से मुख नहीं मोड़ना चाहिए, क्योंकि अब नारियों की भूमिका और विस्तृत हो गई है। अतः यह महिलाओं का ही दायित्व है कि, अपने स्थल अर्थात घर हो या विद्यार्जन स्थल अथवा कार्य-स्थल, इन बच्चियों को जागरूक करें। उन्हें अपनी सुरक्षा के गुर सिखाएं। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में एक सक्रिय भूमिका निभाएं। यह सही है कि, आजकल हम सभी क्षेत्र में नारियों की भूमिका देख रहे हैं। और ये सब जगह अच्छी व्यवस्थापक भी साबित हो रही हैं, अर्थात अपने दायित्व को हर क्षेत्र में कुशलतापूर्वक निभा रही हैं, पर इतने बड़े देश में नारियों व पुरूषों के अनुपात में असमानता स्पष्ट दिख रही है।अतः, नारियों को अपने अस्तित्व को स्थापित करने के लिए अपने अन्याय के खिलाफ संगठित होकर खड़ा होना होगा। जब तक नारियाँ स्वयं अन्याय के खिलाफ खड़ी नहीं होंगी, व्यवस्था इसी तरह चालू रहेगी।

यह सर्वविदित है कि, आजकल महिलाएँ राजनीति में भी रुचि रखती हैं। इसलिए अनेक महिला किसी न किसी रूप में राजनीतिक दलों में अपनी भूमिका निभा रही हैं। यहाँ तक कि ये संसद- विधानसभा में मुखरता से अपने दल का बचाव करती नजर आती हैं, लेकिन ऐसा देखा गया है कि, एकाध मामले के अलावा नारी अस्तित्व के प्रश्न पर ये संगठित नहीं दिखतीं। अर्थात ये अपने दल की विचारधारा अनुरूप ही व्यवहार करती नजर आती हैं।
ध्यान रखें कि, नारी की अस्मिता इतनी सस्ती भी नहीं होनी चाहिए कि, कोई भी उसकी कीमत लगा ले। इसके अलावा नारी को यह समझना चाहिए कि आज इक्कीसवीं सदी में वे अबला नहीं हैं, इसलिए उन्हें आगे बढ़ने के लिए संक्षिप्त रास्ता तलाशने से हर हालत में बचना ही उत्तम रहेगा। उन्हें हमेशा यह याद रखना है कि, हमारे संविधान ने महिला और पुरूष को समान अधिकार दिए हैं। अतः, महिला एवं पुरुषों का समान अधिकार और समान सम्मान होना चाहिए।
यह सही है कि, व्यवस्था में परिवर्तन के लिए नारियों को स्वावलंबी बनाना हम सभी का दायित्व है। एक आदर्श समाज के निर्माण हेतु उनके मन से भय, तनाव, असुरक्षा का भाव समाप्त कर स्वतंत्र रूप से बढ़ने देने में सहायक होना होगा। ध्यान रखें, जब तक नारी स्वावलम्बी बनकर आगे नहीं बढ़ेगी, तब तक एक आदर्श समाज का निर्माण कोरी कल्पना ही रहेगी।

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आज इस बदले हुए माहौल में पुरूष को नारी का अस्तित्व स्वीकारना होगा। अर्थात दोहरे मापदण्डों से हटकर समानता और आपसी सहयोग को बढ़ावा देना होगा, ताकि यह स्थापित हो सके कि, कोई किसी का गुलाम नहीं। जब पुरूष नारी के अस्तित्व को स्वीकार करेगा, तभी नारी को समाज में सही अर्थों में समानता का दर्जा प्राप्त होगा।