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न करने से कुछ करना महत्वपूर्ण है

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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प्रिय शिखर,

आशीर्वाद।

एक साल पहले तक मेरे पास थे,बहुत सारी बातें होती थीं। कई मुद्दों पर चर्चा होती थी। कई बार साथ में बाहर घूमने जाते। वहां भी किसी न किसी विषय पर हम लोगों की बात ही चलती। मेरा प्रयास रहता कि आपकी जिज्ञासा के अनसुलझे प्रश्नों में से कुछ का समाधान हो जाये,तो कुछ तो हो ही जायेगा। न होने से कुछ होना अच्छा होता है।

कई बार हम लोगों ने पास में स्थित होने के कारण नेपाल के ब्रह्मदेव की यात्रा की,जिसका कि व्यापारिक के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है। जैसा कि आपको पता ही है कि टनकपुर के निकटस्थ माँ पूर्णागिरी के दर्शन करने आने वाले श्रृद्धालु ब्रह्मदेव जाकर सिद्धबाबा के दर्शन भी अवश्य करते हैं। इसमें अतिरिक्त लाभ यह है कि,ब्रह्मदेव में आम जरूरत का अधिकांश सामान आसानी से व भारत से कम दामों में मिल जाता है। यही नहीं,टनकपुर से लगभग चार किलोमीटर दूर होने से कोई वाहन न होने पर पैदल ही चल देते हैं। कई बार निजी व अपने वाहन भी प्रशासन की अनुमति से जाते हैं।

कहा जाता है कि कत्यूरी युग के शासक राजा ब्रह्मदेव ने कैलाश मानसरोवर यात्रियों की सुविधा के लिए यह मण्डी बसाई। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ प्रशासक के साथ-साथ धार्मिक और दयालु भी थे। राजा ने जब समझा कि हर साल लाखों की संख्या में माँ पूर्णागिरी के दर्शन को आने वाले सिद्धबाबा जरूर जाते हैं,जो बड़ा ही दुर्गम और कठिन रास्ते पर चलकर है,टो उन्होंने अनेक प्रेरणा से कालान्तर में उसे नीचे लाकर ब्रह्मदेव में पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया और यह स्थान अब सभी आयुवर्ग के भक्तों के लिए सुलभ है। धीरे-धीरे यह धार्मिक स्थल छोटा-सा व्यापारिक स्थल भी बन गया। आज यह नेपाल के कंचनपुर जिले के अर्न्तगत आता है। इस साल माँ पूर्णागिरी मेले के पहले दिन २३ मार्च को पचास हजार से अधिक श्रृद्धालु उत्तराखण्ड के टनकपुर चम्पावत आये,जिन्होंने माँ पूर्णागिरी के दर्शन के बाद नेपाल जाकर ब्रह्मदेव में सिद्धबाबा के दर्शन भी किये।

अभी होली पर घर आने पर मैंने चर्चा की थी कि कुछ बनने के लिए कुछ करना आवश्यक होता है। आपने एकांशी और शुभांशी अपनी बहिनों के साथ स्वीकार भी किया था।मैं उसी घटना को विस्तार से बताना चाहता हूँ। बालक रजत जब छोटे और प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थी थे,तब उनके घर की स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। जैसे-तैसे गुजारा चल रहा था,साथ ही साथ पढ़ाई-लिखाई भी। एक दिन पिताजी के वापस आने पर जब रजत घर पर न मिले तो माँ से पूछा कि कहां गया है। माँ ने बताया कि पड़ोस में टी.वी. देखने गया है। वापस आने पर रजत बहुत डरे हुए थे,सोचा अब तो पिटाई होगी। नहीं तो डांट-फटकार तो पड़ ही जायेगी,पर ऐसा कुछ न हुआ। पिताजी ने कहा-बेटा आज पड़ोस में टी.वी. देखने गये,कोई बात नहीं पर अपनी मेहनत और लगन से भविष्य में कुछ ऐसा करना कि दुनिया तुम्हें टी.वी. पर देखे। आज यह बालक रजत शर्मा के नाम से इण्डिया टी.वी. पर दिख रहा है जिसका आपकी अदालत कार्यक्रम टेलीविजन दुनिया के सफलतम कार्यक्रमों में से एक है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि वर्तमान वित्तमंत्री अरुण जेटली इनके कहीं पर सहपाठी भी रहे।

मेरा यह सब लिखने का उद्देश्य यही है कि इस साल आपने इण्टर की परीक्षा दी है। इसके बाद का समय बड़ा ही कठिन होता है। आगे का रास्ता बड़ी सूझ-बूझ से तय कर अपने भविष्य के निर्माण के लिए आगे बढ़ना होता है। मंजिल न कोई दूर होती है,और न कठिन,बस वह तय करने वाले की इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है। इसी तरह से अध्ययन काल में कोई विषय सरल या कठिन नहीं होता,जिसे गम्भीरता से लेते हैं जिसके लिए मेहनत करते हैं,वह सरल और प्रिय हो जाता है,वहीं जिस पर ध्यान नहीं देते या कम देते हैं,दूर भागते हैं हमारे लिए कठिन और अप्रिय हो जाता है। यह सब मैंने स्वंय अपने अध्ययन काल में अनुभव किया है।

आपका इण्टर विज्ञान का है। उसमें भी जीवविज्ञान समूह के विषय हैं,इसलिए और अधिक सावधानी से अपने रास्ते को चुनना पड़ेगा। कला वर्ग की अपेक्षा रास्तों की सीमितता है। शिक्षा,चिकित्सा,प्रशासन,विज्ञान और जनसंचार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं,जहां पर बहुत कुछ कर अपनी पहचान बनायी जा सकती है। अपने-आपको अलग तरह से प्रस्तुत कर समाज देश के लिए किया जा सकता है। जनसंचार क्षेत्र के कुछ पत्रकार एंकर आपके आदर्श हैं। उनके रास्ते का अनुसरण आपका चेहरा टी.वी. के माध्यम से दुनिया देख सकती है। रास्ता लम्बा और कठिन है,पर दृढ़ इच्छाशक्ति से असम्भव कुछ भी नहीं। मैं अपनी बात करूं,कक्षा छः में संस्कृत में अनुत्तीर्ण हुआ था। उसी में सबसे कम अंक थे,पर समय का खेल देखिए। आज उसी संस्कृत विषय का राजकीय कालेज में प्रवक्ता हूँ। उसकी सर्वोच्च योग्यता भी है।

अब पत्र समाप्त करने से पहले यही कहूंगा कि तय आपको करना है कि मंजिल क्या होगी। रास्ते क्या होंगे और चलना किस तरह से है। समय कम है,निर्णय जल्दी लेना होगा। कुछ बनने की अपेक्षा न करने से कुछ करना महत्वपूर्ण होता है। इसका ध्यान रखना। शेष फिर अगले पत्र में।

परिचयशशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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