हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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यह धरा नहीं है अधीरों की,
यह वीरों की सदा से जाया है
टिका नहीं है कोई इस धरा पर सदा,
हमने संघर्षों से सबको हटाया है।
आए कई और गए कई है,
सदियों से यहाँ आतताई हैं
हम लड़े-भिड़े, छल-छद्म हटाया,
आज भी पछुआ से हमारी लड़ाई है।
दया धर्म को हटाने चले जो,
हमने उनको सबक सिखाना है
जो इठला रहे हैं फूहड़ कामयाबी पर अपनी,
उन्हें औंधे मुँह गिराना है।
आओ मिलकर प्रयत्न करें हम,
संस्कृति विभंजकों को सबक सिखाना है।
पछुआ जीत का परचम फहराने वालों को,
हर हाल में धूल चटाना है।
भारत के खोए गौरव को फिर से,
विश्व पटल पर स्थापित करवाना है
अभिभूत होकर के सब कह उठें कि,
‘चलो, भारत दर्शन को हमने जाना है।’
कोई खून-खराबा नहीं चाहते हैं हम,
बस कागज पर कलम चलाना है।
पछुआ ज्ञान को हटा कर भारत का,
मूल ज्ञान सबके सामने लाना है॥