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संवेदना

डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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पूरा कस्बा शोक में डूबा था। जिस किसी ने वह दृश्य देखा, वह अंदर तक दहल गया था।
…बच्चे आगे वाले कमरे में टी.वी. देख रहे थे कि, अचानक एक ट्रक बहुत तेज गति से आया। ब्रेक फेल हो जाने के कारण संभल न सका और कमरे में घुस गया।… ड्राइवर भाग गया। परिजन घर से अस्पताल… अस्पताल से घर चक्कर लगाते रहे, पहले एक, फिर दूसरी मौत!
शोक संवेदनाएं व्यक्त करने जो भी आता, वह चलते-चलते ‘क्लेम’ की बात अवश्य करता। किस-किसको मना करते ? क्या हो गया है सबको ? बिना जान-पहचान के कई वकील आ चुके थे, जो अपने कार्य-कुशलता की तारीफ कर बता चुके थे कि, वह ऐसे हादसों में अब तक कितने लोगों को कितना क्लेम दिला चुके हैं! इन बातों से परिवार के मुखिया मनोहर बाबू को और अधिक पीड़ा पहुंच रही थी। आँखों में आँसू लिए वह सोचा करते… कभी सोचा ही नहीं था कि, ऐसा जमाना भी देखना पड़ेगा ? इधर २ बच्चों की मौत, उधर लोगों की मरती संवेदनाएं! उन्हें लगता कि, अब यह दुनिया रहने के काबिल नहीं रही! मन की इस पीड़ा को वे अंदर ही दबाए बैठे थे।
थानेदार के बुलावे पर उनका पुत्र थाने गया था। वहां से आते ही वह बोला-“पिताजी..! पूछताछ के बाद थानेदार ने कहा कि वह अच्छा काबिल वकील करा देगा और केस को इतना पुख्ता बना देगा कि, अधिक से अधिक क्लेम मिले… बस उसका ध्यान रखा जाए!”
उसकी बात सुनकर बूढ़े मनोहर बाबू जोर-जोर से रोने लगे। अंदर की पीड़ा फट पड़ी।
“… बेटा, अभी तो २ ही दिन बीते हैं और… और…!”