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स्वीकारा भाषा-साहित्य में ‘एआई’ का तकनीकी महत्व, सतर्क रहने की सलाह

कार्यशाला….

हैदराबाद (तेलंगाना)।

केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सहयोग परिषद तथा वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा ‘हिंदी शिक्षण और कृत्रिम मेधा’ (एआई) विषय पर साप्ताहिक आभासी गोष्ठी आयोजित की गई। इस कार्यशाला के आरंभ में साहित्यकार डॉ. जवाहर कर्नावट द्वारा ‘कृत्रिम मेधा’ से संबन्धित सारगर्भित आरंभिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई।
हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे द्वारा अध्यक्ष, प्रस्तोता, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया।
कार्यशाला में पावर प्वाइंट की जीवंत प्रस्तुति देते हुए साहित्यकार एवं तकनीकीविद प्रो. राजेश कुमार ने कहा कि आज के समय में बिना ड्राइवर की कार, बिना वकील की अदालत और बिना चिकित्सक के चिकित्सालय की कल्पना कृत्रिम मेधा से सहायक हो रही है। शिक्षण के क्षेत्र में चैट जीपीटी (जेनेरटेड प्री-ट्रेंड ट्रांसफार्मर) काफी अंश तक सहायक है। इससे पाठ्यक्रम, पाठ योजना और बोध प्रश्न आदि स्वतः ही तैयार किए जा सकते हैं। कृत्रिम मेधा से समय और श्रम की बचत होती है तथा लेखन, साहित्य एवं पर्यावरण आदि के लिए सुलभ संदर्भ के रूप में पर्याप्त सामग्री आसानी से मिल जाती है। उन्होंने चिड़ियाघर पर लिखने के लिए लेख, जीवंत सामग्री सहित तैयार कर बताया। ये सभी सुविधाएँ हिंदी में भी उपलब्ध हैं। हालाँकि, इसमें नकल की गुंजाइश रहती है। डॉ. कुमार का मन्तव्य था कि, कृत्रिम मेधा का ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल होना चाहिए।
अपने अध्यक्षीय उदबोधन में सम्पादक एवं वेब विशेषज्ञ जयदीप कर्णिक ने कहा कि नवाचार का आकर्षित करना स्वाभाविक है। मनुष्य का सृजन मनुष्य को विस्थापित नहीं कर सकता। कृत्रिम मेधा अच्छी भी है और निर्मम भी है। इससे हम अपने नेमी कार्यों को आसान बना सकते हैं। हमें सोच-समझ के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। हमारे लिए केवल विदेशी नकल नहीं, बल्कि भारत और भारतीयता के साथ भाषा, संस्कृति, सोच, ज्ञान परंपरा तथा विशद साहित्य आदि को साथ लेकर आगे बढ़ाना श्रेयस्कर होगा। भारतीय तकनीकी कंपनियों को भारतीय परिप्रेक्ष्य में सामग्री तैयार करनी चाहिए।
प्रश्नोत्तर सत्र में प्रो. ललिता रामेश्वर के एआई की आवश्यकता के सवाल पर प्रो. कुमार ने कहा कि, यह तकनीकी सहायिका है। कनाडा से प्रो. संदीप कुमार के प्रश्न के उत्तर में मोहन बहुगुणा ने बताया कि यह ध्वनि के आधार पर भी कार्य करता है।
जापान से जुड़े पद्मश्री डॉ. तोमियो मिजोकामी ने गदगद होकर कहा कि इस समय उनके मनःमस्तिष्क में कृत्रिम मेधा से संबन्धित कोई प्रश्न नहीं है। वे प्राकृतिक मेधा को महत्व देते हैं।
अमेरिका के पेंसिल्वेनिया से जुड़े आचार्य सुरेंद्र गंभीर, वयोवृद्ध भाषा विज्ञानी प्रो. वी जगन्नाथन, कनाडा में हिंदी अध्यापिका प्रमिला भार्गव ने भी बात रखी।
सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी से जुड़ीं इस कार्यक्रम की संयोजक प्रो. संध्या सिंह ने मन्तव्य दिया कि, कृत्रिम मेधा को प्रयोग में लाकर परखने की जरूरत है। दूर-दराज या दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी इससे काफी अंश तक पूरी की जा सकती है।
विदुषी प्रो. संध्या सिंह द्वारा सभी को धन्यवाद दिया गया।

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