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भारत और चीन के कड़वाहट भरे रिश्ते

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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भारत और चीन के रिश्ते स्पर्धा विशेष……

सर्वविदित है कि भारत और चीन के रिश्तों में हमेशा कड़वाहट रही है। यह किसी से छुपी नहीं है,बल्कि जगजाहिर है।
१९६२ के दशक में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। फलस्वरूप भारत की जान-माल की अत्यंत हानि हुई थी,किन्तु उससे भारत ने सबक सीखा और अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाते हुए स्वयं को शक्तिशाली बनाया,जिसका परिचय १९६५,१९७१ सहित १९९९ में पाकिस्तान को पराजय करके दिया था।
वर्तमान में भी चीन ने अपनी कायरता गलवान घाटी में दिखाई है। उक्त गलवान हिंसा चीन और चीनी सैनिकों के विश्वासघात का निंदनीय कृत्य है,जिससे उपजा दर्द कभी भूलने वाला नहीं है। हालांकि,चीन और चीनी कायर सैनिकों को हमारे वीर साहसी और पराक्रमी सैनिकों ने वीरगति प्राप्त करने से पहले उनकी कायरता का वह सबक सिखाया है,जिसको उनकी आने वाली पुश्तें भी याद करेंगी।
हमारे जांबाज देशभक्तों की शूरवीरता का गुणगान विश्व स्तर पर हुआ है और चीनी विश्वासघात के निंदनीय कृत्य पर अपमानित थू-थू अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट शब्दों में हुआ है,जिस पर चीन और चीनी सैनिक स्वयं शर्मशार हो रहे हैं। कारण यह भी कि,लद्दाख के गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में शहीद हुए २० जवानों को केंद्रीय गृह मंत्री ने श्रद्धांजलि दी है,जबकि चीन अपने सैनिकों के ५० शवों की संख्या बताने में भी असमर्थ हुआ है। इससे हमारे सैनिकों का मनोबल जहां ऊंचा हुआ है, वहीं चीनी सैनिकों के शवों के तिरस्कार से चीनी सैनिकों का मनोबल गिरा है। हमारे प्रधानमंत्री के साथ-साथ देशवासियों ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी वीरगति को नमन किया है,और आने वाली पीढ़ियां नमन करती रहेंगी। इसके अलावा चीन की उक्त कायरता का बदला लेने के लिए हमारे प्रधानमंत्री कमर कस चुके हैं,जिसके प्रभाव और बहादुर सैनिकों के डर से चीन और चीनी सैनिक सहमे हुए हैं। फलस्वरूप भारत विजयी और चीन अपनी औकात में आने पर विवश हो रहा है। इससे चीन और भारत के रिश्ते युद्ध की ओर जा रहे हैं,किन्तु वर्तमान समय में भारत और भारतीयों का मनोबल बहुत बढ़ा हुआ है। जहां हमारे वीरगति प्राप्त सैनिकों की आत्माएं राष्ट्र और राष्ट्रवासियों से मिले सम्मान से गौरवान्वित होकर सिर ऊंचा उठाकर आकाश मार्ग पर विचर रहीं होंगी, वहीं चीनी सैनिकों की आत्माएं अपने राष्ट्र से निराश होकर गर्दन झुकाए हुए भटकती हुई जा रही होंगी।

परिचय–इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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