फंसना न इनके दांव में

शशांक मिश्र ‘भारती’ शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) ************************************************************************************ कोयल की कुहू-कुहू कभी कौए की कांव-कांव में। पथ भटके हुओं की मंजिल न किसी गाँव में। दर-दर ठोकरें खायी,हुए पसीने से तर-बतर, थोड़ा ठहरो सुस्ता लो बैठ किसी पीपल की छाँव में। जब पूर्व निश्चित हो जाये जाने का स्थल, तभी रखना पाँव पार करने को किसी नाव में। … Read more

न कहना ख़ुदा भी नहीं रहा अब तो

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’ छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ********************************************************************  ख़ुशी का कोई सिला भी नहीं रहा अब तो। यहाँ ग़मों का पता भी नहीं रहा अब तो। ख़ता हुई तो मुझे उसने ये सज़ा दी है, किया मुआफ़ ख़फा भी नहीं रहा अब तो। जो अश्क़ का था समंदर उदास आँखों में, हुआ न ख़ुश्क भरा … Read more

बेसबब ग़ुस्ताख़ियां

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचना शिल्प: वज़्न-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,अर्कान-फाइलातुन×३-फाइलुन) बेसबब है की नहीं ग़ुस्ताख़ियां अक्सर सुनो। जाम बिन आई नहीं मदहोशियां अक्सर सुनो। ज़िल्लतों के बाद हासिल ना ज़मीं औ ना फलक़, ना मिलें क़िस्मत बिना ऊंचाइयां अक्सर सुनो। हर बसर तनहा कलंदर हो सके मुमकिन नहीं, जो बने उसको मिलें तनहाइयां अक्सर … Read more

ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** ज़रा और भी कुछ निखर जाऊँ मैं, सभी के दिलों में उतर जाऊँ मैं। जिधर खार ही फूल-सा लग रहा, उसी रास्ते से गुज़र जाऊँ मैं। है शह्र हर तरफ़ पत्थरों-सा यहाँ, तभी सोचता हूँ किधर जाऊँ मैं। मिला देवता मंदिरों में नहीं, इबादत करूँ या कि घर जाऊँ मैं। … Read more

कसक

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’ छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ********************************************************************  संघर्षों का ये फल है क्या, बेमतलब कोलाहल है क्या। हमको तुमसे लड़वाएगा, सियासतों का दंगल है क्या। ये जो नफ़रत फैलाते हैं, कोई इनका कायल है क्या। क़ातिल को मेरा बतलाया!! क्या कहता है ? पागल है क्या ? हर मजहब ये सिखलाता है, हिंसा भी … Read more

रोटी और मकान नहीं है

वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरी कुशीनगर(उत्तर प्रदेश) *************************************************************** रोटी और मकान नहीं है, जीवन यह आसान नहीं है। खुद की बदहाली पर सोचो, रोता कौन किसान नहीं है। फुटपाथों पर सोने वाला, बोलो क्या इंसान नहीं है ? रोजी-रोटी ढूँढ रहा जो, वह कोई नादान नहीं है। चूल्हे में है आग भले पर, चावल और पिसान नहीं … Read more

रंज-ओ-ग़म गुनगुना लीजिए

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’ छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ********************************************************************  एक नग़मा बना लीजिए, रंज-ओ-ग़म गुनगुना लीजिए। अपनी कमियों के एहसास को, बांसुरी सा बजा लीजिए। राह के ख़ार को चूम कर, मुश्किलों को सजा लीजिए। दर्द ने मीर-ओ-मीरा गढ़े, दर्द का भी मज़ा लीजिए। शम्स हो जाए गर चे गुरूब, शम’अ बन जगमगा लीजिए। सच का … Read more

ज़िन्दगी हरदम लेती परीक्षा

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** (रचनाशिल्प:काफ़िया-आर,रदीफ़-है मिलता, बहर-१२२२ १२२२ १२२२ १२२२) फ़क़त ही याचना करके,कहाँ अधिकार है मिलता, उठा गाण्डीव जब रण में,तभी आगार है मिलता। नहीं मिलता यहाँ जीवन,बिना संघर्ष के कुछ भी, अगर मन हार बैठे तो,कहाँ दिन चार है मिलता। अगर खुद पे यकीं हो तो,समंदर पार कर लोगे, मगर साहिल … Read more

झूठ ही मुस्कुरा दिया होगा

गोविन्द राकेश दलसिंहसराय (बिहार) *************************************************************** झूठ ही मुस्कुरा दिया होगा। दर्द दिल का छुपा दिया होगा। आख़िरी साँस थमने से पहले, हाथ अपना हिला दिया होगा। पाँव तो उठ सका नहीं उसका, भूख ने भी सता दिया होगा चीख़ भी ज़़ोर से नहीं पाया, आह को भी दबा दिया होगा। आँख उसकी हुई ज़रा-सी नम, … Read more

सबकी ख़बर रखती है

शैलेश गोंड’विकास मिर्ज़ापुरी’ बनारस (उत्तर प्रदेश) ************************************************************************ (रचनाशिल्प:बहर-मफाईलुन,फाएलुन,फालातुन) सभी चालों पर नज़र रखती है। हुकूमत सबकी ख़बर रखती है। बुरी आँखों से नज़र लगती है, मग़र माँ मेरी जंतर रखती है। ये डरती हरगिज़ नहीं दुनिया से, कि नारी दिल में गदर रखती है। सियासत की कुछ असर लगती है, कि गंगा माँ भी सबर … Read more