नहीं शर्मसार करो

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’ कानपुर(उत्तर प्रदेश) ***************************************************** रोज़ उसको न बार-बार करो। जो करो काम आर-पार करो। आ के बैठो गरीबखाने में, मेरी दुनिया को मुश्कबार करो। तेरे बिन…

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मालूम नहीं,दौड़े जा रहे हैं लोग

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* (रचनाशिल्प:२१२ १२१ २१२ १२१) कुत्ते की क़दर,आदमी बेक़दर देखा, सबकी ख़बर,ख़ुद को बेख़बर देखा। बेवफ़ा हवाओं ने अपना रुख़ बदला, मौसम-ए-बहार में सूखा शज़र देखा।…

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बेवक्त में सहारा नहीं मिलता

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** हर गली में शिवाला नहीं मिलता। रौब वाला दुशाला नहीं मिलता। खोजने से उजाला नहीं मिलता। भूख मे हो निवाला नहीं मिलता। यूँ ठिकाने बहुत…

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हमीं ने देर कर दी इजहार में…

चतुरसिंह सी.एस .’कृष्णा’ भरतपुर (राजस्थान) ******************************************************** रात-भर जागता रहा उसके फोन के इंतजार में। शायद हमीं ने देर कर दी उससे इजहार में। सोचता हूँ तो आज भी दिल दहल जाता…

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किसको बताएँ

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली *******************************************************************************  (रचना शिल्प:२२१२ २२१२ २२१२ २२१२) किसको बताएँ क्यों जहर जीवन में अब है भर गया, जलती हुई इस आग में वह राख सब कुछ कर गया।…

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देश पर मिटना सौभाग्य

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’ ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर) ******************************************************** प्राकृतिक आमन्त्रण है संघर्ष, स्वीकार करने पर होता है हर्ष। बचपन जवानी की खबर नहीं, जीवन बीत जाता वर्ष प्रतिवर्ष। प्रत्येक पल…

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कोई कैसे समझे

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२) कोई कैसे समझे मुसीबत हमारी, मुझे तो पता है विवशता तुम्हारी। सिमटती हुई रौशनी के सहारे, सफ़र है तुम्हारा अँधेरों में जारी।…

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अब क्या बचा है गाँव-सा

दौलतराम प्रजापति ‘दौलत’ विदिशा( मध्यप्रदेश) ******************************************** आज अनबन क्या हुई घर बार से, लोग आ कर लग गए दीवार से। कौन जिम्मेवार है इस जुर्म का, राज साया हो गए अखबार…

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इंसानियत है ही कहां ?

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’ ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर) ******************************************************** इंसानियत है ही कहां,जो शर्मसार हो, सचाई लुप्त होगी बिका कलमकार हो। आशा क्या करोगे लोकतंत्र से तुम सारे, जब चारों स्तम्भों…

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ब़ुत बनाकर

डॉ.अमर 'पंकज' दिल्ली ******************************************************************************* (रचना शिल्प:२१२२ २१२२ २१२२) ब़ुत बनाकर रोज ही तुम तोड़ते हो, कर चुके जिसको दफ़न क्यों कोड़ते हो। अब बता दो कौन सी बाक़ी कसक है,…

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