काश! कुछ ऐसा हो जाए

शशि दीपक कपूरमुंबई (महाराष्ट्र)************************************* मनुष्य को आस-पास का परिवेश सदैव प्रभावित करता है। किसने किस समुदाय से क्या सीखा, यह अपने स्वभाव पर निर्भर करता है और फिर वह सबके…

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तितली रानी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) *********************************************** नव रंगों से है सजा चमन,आया सावन मास मधुर हैरंग-बिरंगे पंख खोल चहुँ,तितली रानी पुष्प शिखर है। इतराती रति रागिनी बनकर,इठलाती तितली युवमन हैप्रीत…

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गीत प्रेम के मैंने गाए

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ उदयपुर(राजस्थान) *************************************** रचनाशिल्प:मात्रा २८, १६-१२ यति, अंत दो गुरू एक दूजे में हम रच गये, बनती गयी कहानी।गीत प्रेम के मैंने गाए, हो गयी मैं दिवानी॥ प्रेम पाश…

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गुरु नहीं, जीवन शुरू नहीं

डॉ.अरविन्द जैनभोपाल(मध्यप्रदेश)***************************************************** गुरुपूर्णिमा विशेष.... प्रत्येक मानव को ही शिक्षा के लिए शिक्षक की जरुरत होती है। वास्तव में मानव बहुत कमज़ोर प्राणी होता है, बनिस्बत पशुओं के। पशु जन्म के…

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ऐसे ही बढ़ते रहे तो…

अजय जैन ‘विकल्प’इंदौर(मध्यप्रदेश)****************************************** ऐसे ही बढ़ते रहे तो आखिर होगा क्या,देख कर आँख मूंदी तो आखिर होगा क्या ? चारों ओर है महंगाई, कई संकट सामने खड़े,लालन-पालन हुआ कठिन, आखिर…

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बचपन

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)****************************************** काश! लौट आते वे बचपन के दिन आज,जिसमें,दादी चूमती भालों को।माता,लोरी गा कर सहज सुलाती,बहना, चटकारी देती गालों को।वह बाबुल की बाँहों का झूला होता,सागर समझता…

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भर आई हरियाली

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** वर्षा की रिमझिम बूंदों से,भर आई है हरियाली।खेत, बाग, वन, चरागाह सब,लदे हुए फल तरू डाली॥ भरे खेत सब धान मदीरा,हरे-भरे हैं दालों से।लौकी, कद्द्दू, ककड़ी…

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कांपती धरा की पुकार

डॉ.अशोकपटना(बिहार)*********************************** कांपती धरा की है पुकार,मनुष्य कुछ तो करो विचार। यह धरती पर एक आक्रमण है,जनमानस की समस्याओं कासबसे प्रमुख कारण है। पृथ्वी नहीं सम्भाल पाएगी यह भार,समस्त समुदाय पर…

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बेरुख़ी अच्छी नहीं

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’रावतसर(राजस्थान) ****************************************** रचना शिल्प:क़ाफ़िया-ई स्वर, रदीफ़-अच्छी नहींबहर २१२२, २१२२, २१२२, २१२ दोस्ती रक्खो सभी से दुश्मनी अच्छी नहीं।और अपनों से कभी भी बेरुख़ी अच्छी नहीं। देखकर अन्याय को…

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जीवन की उलझन

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’अलवर(राजस्थान)*********************************************** उलझन तिलझन कितनी भी हो,मंजिल भी चाहे दूर लगेपल छिन-पल छिन बढ़ना है आगे,संग सभी मिल साथ चले। भूल-भुलैया है मार्ग में,चकित सभी हैं ठगे-ठगेकौन पराया कौन…

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