आत्मजा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य से,अध्याय-८ … बोली माँ पति से समझा कर, अब है समय नहीं सोने का खोजो वर सुयोग्य बेटी को, नहीं एक भी क्षण खोने का। हुई सयानी बेटी अपनी, लगी समझने वह सब बातें भावी के प्रति ही आकर्षण, बढ़ता ज्यों बढ़ती दिन-रातें। रहती वह खोयी-खोयी-सी, जैसे अपने को … Read more