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क्या यह भी प्रेम ?

सोमा सिंह ‘विशेष’
गाजियाबाद(उत्तरप्रदेश)
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रसोईघर में एक चूहा इधर कुछ दिन से रोज ही नजर आ जाता है। सारे जतन करके हार गई,पतिदेव ने एक दो बार उसे भगाने की नाकाम कोशिश भी की। फिर भी न जाने कौन-से चोर रास्ते से साहब रसोईघर में घुस आते हैं,ये अभी भी रहस्य ही बना हुआ है। ईधर अपने शस्त्रों को धराशाई होते देख श्रीमानजी ने आरोप बाण चलाया कि,-“तुम ज़रूर कुछ खाने के लिए छोड़ देती हो बाहर,तुमने ही हिला रखा है इसे,अब भुगतो तुम्हीं।”
मैंने भी निश्चय किया कि,हो न हो इस चूहे से छुटकारा तो पा कर रहूंगी। ढक्कन वाला कूड़ेदान लगा दिया गया। रसोईघर की अलमारियों की खिड़कियों दुरूस्त करा दी गईं। कच्ची सब्जियों की टोकरियाँ ढक्कनदार हो गई। फलों की टोकरी का स्थानांतरण भी खाने की मेज से पढ़ाई की मेज पर दूसरे कमरे में हो गया। कहीं भूल से भी आटा-रोटी अनाज घर के किसी भी कोने में न छोड़ा जाता,पर है गजानन वाहन,तुम्हारा आगमन नियमित रूप से यथावत होता रहा। अक्सर जब भी रसोई की लाईट ऑन करती,तुम्हारे दर्शन हो ही जाते। अब सीधी ऊँगली से काम न चला तो मुझे भी टेढ़ी ऊँगली करनी पड़ी और अब चूहेदान व चूहेमार दवाओं को आजमाया गया। तुम भी ठहरे बुद्धि के स्वामी,प्रथम पूज्य गणनायक के सेवक। कहाँ छलावे में आने वाले। सारे प्रयत्न विफल हुए।
अब हारकर मुझे विघ्नहर्ता की शरण में ही जाना पड़ा। प्रथम पूज्य ईश का वरदान ले मैंने तुम्हें पकड़ने को जाली लगा दी। तुम फिर भी बच निकले। तुम्हारे हाथों मिली शिकस्त से खीजकर मैंने भी अब अपना शातिर दिमाग दौड़ाया और तुम्हें फँसाने को जाली के उपर एक मोदक रख दिया। ये प्रलोभन तुम भी न बिसरा सके और आ ही गए उस मेट के बीचों-बीच,बड़े स्वाद से तुमने मोदक खाया। पर यह क्या!, तुम तो भागकर छिप जाना चाहते थे,वहीं जहाँ से आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे,पर इस बार तुम असहाय थे।
अब तुम नहीं हो,फिर भी जब भी रसोई का दरवाज़ा खोलती हूँ,लगता है तुम हो,पर तुम कहीं नहीं। न जाने ऐसा क्यूँ होता है कि, जिनसे आप छुटकारा पाना चाहते हो,वो भी आपकी आदतों मे शुमार हो जाते हैं। क्या यह भी प्रेम है….।

परिचय-सोमा सिंह का बसेरा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में है। साहित्यिक उपनाम ‘विशेष’ है। ५ नवम्बर १९७३ को मेरठ में जन्मी सोमा सिंह को हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। रसायन विज्ञान में परास्नातक सोमा सिंह का कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक) का है। सामाजिक गतिविधि में आप पर्यावरणकर्मी हैं। इनकी लेखन विधा काव्य है। ‘मेरा पंछी'(कविता संग्रह)एवं आखर कुंज (साझा संग्रह)सहित विद्यालय की पत्रिका में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको सम्मान- पुरस्कार में स्वरचित कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला है। ब्लॉग पर भी सक्रिय सोमा सिंह की विशेष उपलब्धि शिक्षण तकनीक,विज्ञान व पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में पुरस्कृत होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज,साहित्य व विज्ञान की सेवा करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तथा प्रेरणापुंज-डॉ. अब्दुल कलाम साहब हैं। देश,साहित्य व विज्ञान की सेवा को जीवन लक्ष्य मानने वाली सोमा सिंह की विशेषज्ञता-प्रेरणादायी कविताएं हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“मैं अपने देश व हिंदी भाषा के समक्ष नतमस्तक हूँ।”

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