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वो जीवन था बड़ा सलोना

आशीष प्रेम ‘शंकर’
मधुबनी(बिहार)
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वो जीवन था बड़ा सलोना,
गुड़िया रानी खेल-खिलौना
जीवन चक्र बड़ा ही निर्मम,
करते थे जब सब मनमाना।

कभी रूठना,फिर उठ जाना,
वैदेही-सा जीवन झरना
जिसे न थी चिंता एक पल भी,
अब चिंता ही जीना-मरना।

माँ के हाथ से भोजन खाना,
पिता के कंधों पर इठलाना
मन था निर्मल गंगा जैसा,
भेदभाव मुक्त था आना-जाना।

बड़े-बड़े पैसे वाले थे पर,
समझ न आया क्या समझाना
मन में चिंता सबकी खातिर,
सब थे अपने ही,था याराना।

खेल-खेल में सब बिसराना,
आज,हारा कल उसे हराना
पर सबने यह पाठ पढ़ा था,
सबकी खातिर सब लड़ जाना।

विरह की ज्वाला उर बैठी अब,
बचपन की यादें सर पर अब
कोई जो मांगे जीवन सारा,
लौटा दे बचपन के दिन सब।

बचपन के सब हैं दिवाने,
फिर मिल जाए वो मस्ताने।
सारा जीवन व्यर्थ है लगता,
जब भी हो बचपन की चर्चा॥

परिचय-आशीष कुमार पाण्डेय का साहित्यिक उपनाम ‘आशीष प्रेम शंकर’ है। यह पण्डौल(मधुबनी,बिहार)में १९९८ में २२ फरवरी को जन्में हैं,तथा वर्तमान और स्थाई निवास पण्डौल ही है। इनको हिन्दी, मैथिली और उर्दू भाषा का ज्ञान है। बिहार से रिश्ता रखने वाले आशीष पाण्डेय ने बी.-एससी. की शिक्षा हासिल की है। फिलहाल कार्यक्षेत्र-पढ़ाई है। आप सामाजिक गतिविधि में सक्रिय हैं। लेखन विधा-काव्य है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में केसरी सिंह बारहठ सम्मान,साहित्य साधक सम्मान,मीन साहित्यिक सम्मान और मिथिलाक्षर प्रवीण सम्मान हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जागरूक होना और लोगों को भी करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं प्रेरणापुंज-पूर्वज विद्यापति हैं। इनकी विशेषज्ञता-संगीत एवं रचनात्मकता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी भाषा है,और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ नहीं किया है,लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति खराब होती जा रही है। लोग इसे प्रयोग करने में स्वयं को अपमानित अनुभव करते हैं,पर हमें इसके प्रति फिर से और प्रेम जगाना है,क्योंकि ये हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इसे इतना तुच्छ न समझा जाए।

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