कुल पृष्ठ दर्शन : 207

You are currently viewing सत्यान्वेषी ध्यानप्रेमी स्वामी जी

सत्यान्वेषी ध्यानप्रेमी स्वामी जी

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
*********************************

स्वामी विवेकानन्द जी जैसे निराले व्यक्तित्व को प्रणाम एवं श्रद्धाजंली अर्पण।

स्वामी जी के जीवनादर्श एवं चरित्र पर विभिन्न तथ्यादि से पता लगता है कि,गम्भीर ध्यान से ही समझदार मन तैयार होता है। अटल,शुद्ध,स्वाधीन विचार युक्त मन के अधिकारी स्वामीजी तो जन्मजात ‘ध्यानप्रेमी’ थे। उनके जीवन की कहानी को विश्लेषण करने से ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं,जिससे उनकी कठोर विचारयुक्त मानसिकता एवं त्वरित निर्णय लेने का परिचय मिलता है। ध्यान केन्द्रित स्थिर मन कोई भी दु:समय या अभावग्रस्त क्षण में पथ भ्रष्ट होने से रक्षा करता है,जिसका ज्वलंत उदाहरण स्वामी जी हैं। स बारे में एक छोटी-सी कहानी ऐसी भी है-सन १८८४ की बात है। पिता विश्वनाथ दत्त का परलोक गमन हुआ,संसार में दारुण अभाव,छोटे-छोटे भाई-बहन,संसार में भयंकर आर्थिक अभाव। इसी समय स्वामी जी ने बी.ए. उत्तीर्ण की।भाई-बहन,माँ इन लोगों के परवरिश के लिए नौकरी चाहिए, अर्थ चाहिए,लेकिन कौन देगा ? कौन करेगा सहायता ? सुख के समय में सब साथ देते हैं, लेकिन दु:ख-कष्ट के समय वही लोग मुँह फेर लेते हैं,पहचानते तक नहीं! चरम दुर्दिन के समय में यही उपलब्धि स्वामी जी को हुई थी। सिर्फ यही नहीं,कुछ लोग ऐसी कूट रचना रचने लग गए ताकि स्वामी जी उनकी माँ, भाई-बहन सहित अपना पैतृक भवन भी छोड़कर जाने को बाध्य होने पड़े। चारों ओर अभाव, हताशामय अंधेरा,ऐसी अवस्था में समूचे परिवार की परवरिश करने की जिम्मेदारी वहन करने के साथ-साथ मानसिक संतुलन को दृढ़ता से संतुलित रख पाना-एक बहुत कठिन परीक्षा। हर रोज ‘पुलाव’ खाने वाले नरेन्द्रनाथ दिन बिता रहे अनाहार में,नल का पानी पीकर। मुक्त मानसिकता के अधिकारी नरेन्द्रनाथ-जागतिक तथा सांसारिक चिन्ताग्रस्त! तब ईश्वर में अभिन्न आस्था व विश्वास रखने वाले नरेन्द्रनाथ के मन में पुंजीभूत हुआ संदेह- ईश्वर है या नहीं ? प्रश्न एक ही ‘ईश्वर है या नही ?’ सांसारिक अभाव एक ऐसी चीज है, जो सब पूर्व धारणाओं में बदलाव ला सकती है। आर्थिक दुश्चिन्ता में अस्थिर चंचल मन ईश्वर के अस्तित्व के बारे में प्रश्न उत्पन्न कराता है -‘ईश्वर है या नहीं ?’ चरम दुर्दिन में जब कोई सहायता करने वाला नहीं,ठीक उसी समय एक धनी महिला से वैवाहिक प्रस्ताव को स्थिर आदर्शवादी नरेन्द्रनाथ द्वारा प्रत्याख्यान करना या दुर्दिन में नरेन्द्रनाथ को जब दक्षिणेश्वर में ठाकुर रामकृष्ण देव जी ने माँ भवतारिणी काली से अतुल वैभव,धन दौलत को मांग लेने के लिए परामर्श देकर माँ भवतारिणी के गर्भ गृह में भेजा,उस समय नरेन्द्रनाथ ने माँ से ज्ञान,विवेक,वैराग्य को देने के लिए प्रार्थना की। ठाकुर श्री ने नरेन्द्रनाथ को उनके सांसारिक अभाव के बारे में स्मरण कराकर पुनः माँ भवतारिणी माँ के पास भेजा,परंतु नरेन्द्रनाथ ने बार-बार पूर्वानुसार एक ही प्रार्थना माँ से की। वे नहीं मांग पाए जागतिक वैभव को,यह स्वामी जी का लोभ,भोगविलास मुक्त उच्च मानसिकता का परिचायक है। सिर्फ एक बार नहीं,बहुबार इस तरह के प्रलोभन को प्रत्याख्यान करना-एक दृढ़ त्यागी, योगनिष्ठ,परिपक्व मानसिकता का ही परिचय है। एक युवा आदर्श,अनाहार,दुश्चिन्ताग्रस्त मानसिक अस्थिरता में मानसिक संतुलन को सटीक न्यायपूर्वक सही दिशा में धारण करना या परिचालन करना-परिपक्व मानसिकता का ही परिचायक है। ऐसे मन के गठन के लिए विशुद्ध ध्यान की आवश्यकता होती है,जो नरेन्द्रनाथ में सहज स्वभाव में उपलब्ध रहा। ठाकुर जी के अनुसार ‘नरेन,ध्यानसिद्ध महापुरुष,सप्तऋषियों में से एक है नरेन।’ सिर्फ ठाकुर श्री रामकृष्ण देव जी से ही नरेन्द्रनाथ का सही मूल्यांकन हो पाया था। नरेन्द्रनाथ ने भी गुरुपद में स्वीकृति देकर नि:शर्त आत्मसमर्पण किया था। वे शिष्य नरेन्द्रनाथ के चरित्र व आदर्श पर ठाकुर श्री अटूट विश्वास रखते थे।

अति उच्च विशुद्ध स्थिर मानसिकता एवं अस्वाभाविक मेधा या स्मरणशक्ति के अधिकारी, मानवप्रेमी,देशप्रेमी नरेन्द्रनाथ या चिर युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद अर्थात स्वामी जी,जिनको स्मरण करते ही सर्वतापों का नाश होकर शांति प्राप्त होती है। योगनिष्ठ,ध्यानप्रेमी,सत्यनिष्ठ,वीरयुवा सन्यासी जागतिक ताप को हरण करने वाले सद्गुरु पदाश्रीत स्वामी विवेकानंद जी के चरणतले अजस्र प्रणाम।

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

Leave a Reply