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आत्म बोध की आत्मा का महात्मा

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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द्वैष,दंभ,घृणा नहीं,
युद्ध की दे दी
एक नई परिभाषा।
हिंसा,हत्या,घाव,
छल-छदम प्रपंच नहीं
मानव को मानवता से प्रेरित,
बता दी एक
नयी सभ्यता।
गीता का भी है कहना-
हिंसा,हिंसक नहीं प्रवृत्ति
मानव मानवता की,
यह तो पशुवत व्यवहार।
गांधी,बुद्ध,महावीर में
है अंतर सिर्फ इतना,
महावीर का
अंहिसा धर्म मार्ग,
मानवता के शान्ति सन्मार्ग
मोक्ष की राह।
गांधी ने अहिंसा
को कर्म-धर्म के,
मध्य सिद्धान्त सेतु
जीवन मूल्य बनाया।
परमार्थ,पुरूषार्थ,पराक्रम
के लिये अंहिसा,
को अनिवार्य हथियार बनाया।
नहीं यह दया भाव,
कृतार्थ या कृतज्ञ भाव
अहिंसा तो परिभाषित करती,
परम पराक्रम कालजयी
जन्मेजय का अपराजय,
विजयी भाव।
अस्मत अस्ति,अस्तित्व
मानव मूल्यों मानवता,
युग में गांधी और महात्मा का
अंहिसा ही सिद्धान्त यथार्थ।
आत्मा गांधी की है कहती-
मेरे आने-जाने के
दिन ही युग को,
याद हैं आते।
मैंने जिया युग को,
जिन मूल्यों की खातिर
हर घड़ी भुलाये जाते।
भ्रष्टाचार-अन्याय से,
त्रस्त जन-जन
बच्चा भविष्य राष्ट्र का,
कुपोषण का शिकार,
किसान है शोषित
करता आत्मदाह,
हो बेहाल।
रोज मारी जाती,
है बेटियां
नारी अपनी अस्मत
की करे पुकार।
युवा शिक्षा रोजी,
रोजगार को खोजता
व्यवसायी को
सुरक्षित आशियाने,
की दरकार।
दलित दासता
में जीता,
खोजता जीवन
की मुस्कान।
कभी ठंड से मरता,
वर्षा और तूफानों में बहता
तपती दोपहरी में तोड़ता पत्थर,
लू से मरता।
देखो इस नये समाज को,
जहां दहेज दानव है हावी।
धर्म शास्त्र बतलाते,
इन्सानों को
मरने के बाद जलाते।
अब तो बेटियां दानव
दहेज की ज्वाला,
में हर रोज
जलायी जाती हैं।
देखो आज की राजनिति को,
नेता नीति नियन्ता को
गांधी की मर्यादा की,
कसमें खाते
`गांधीवादी` का स्वांग रचाते।
भरे बाजार में मुझे ही,
नंगा रोज नचाते।
राजनीति में सभी हैं कहते-
गांधी को अपना आदर्श और पूर्वज,
फिर भी मेरे ही आदर्शों को
रोज कफन नया ओढ़ाते।
बना दिया है लोगों ने,
मेरे आदर्शों मूल्यों को
पत्थर मिटा दिया है खुद की,
आत्मा से भाव-भावना।
भूल गये सब अपना
कर्तव्य-धर्म,
प्रेम दया करूणा मानव
मानवता का सिद्धान्त,
यदि मानव जानो तो
हर बच्चा,वृद्ध,प्रौढ़,नौजवान,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब में गांधी,
कठिन कार्य है
गांधी मूल्यों
आदर्शों को जीना।
तभी पूछता है आज,
भारत का जन-जन
क्या आज भी गांधी है सत्य!
क्या है इस भौतिकवादी
भागते-दौड़ते युग में,
गांधी की प्रासंगिकता।
कहते हैं गांधी-
“सुनो आज के दुनिया वालों,
नहीं जरूरी
तुम मुझको मेरे
आदर्शों को मानो।”
पहन खादी का कुर्ता
गांधी टोपी
गांधी का अनुयायी बन,
गांधी के आर्दशों की
नयी-नयी परिभाषा देते,
देते दुनिया को नित-नयी
टोपी पहनाते।
गांधी का सिद्धान्त
बताता सर्व धर्म सम्भाव का नाता,
सब हैं भाई-भाई
आज वक्त बदल गया है,
रक्त रंग का अलग-अलग
नहीं रहा अब कोई भाई,
बने हुए सब एक-दूजे की खातिर
अपने मतलब के कसाई।
गांधी कहते-
`देख रहा हूँ,
हर शहर मोहल्ले-गली
नुक्कड़ चौराहों
पर हर मौसम हर भावों पे,
बन पत्थर की मूरत
नहीं दिखता हूँ,
भारत के समाज में
भारत के इन्सानों में।`
जानो
खुद को पहचानो,
खुद को जान पहचान गए यदि
तो मिट जायेगें संदेह सभी।
जाग उठेगी आत्मा,
मिल जायेगा जीवन को
अलोकित पथ।
तब तुम जानोगे,
देश राष्ट्र समाज
आदर्शों को,
चाहे जहां भी जाओगे
देखोगे तुम गांधी को,
प्रत्यक्ष और संग हर लम्हें मेंll

परिचय-एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।

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