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उम्मीद के सिक्के

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मित्रों मैं तुम्हें सुनाती हूँ उम्मीद के सिक्के की कहानी,
चली आ रही पूर्वजों से करना उम्मीद,बात है पुरानी।

हर रोज मानव के मन में,नई-नई उम्मीद रहती है,
जिसे सभी दुनिया,उम्मीद का सिक्का कहती है।

हर मनुष्य कभी अपनों से उम्मीद करता है,
जो पूर्ण ना हो,परायों से,उम्मीद करता है।

जब उन्के सन्मुख कोई उम्मीद का सिक्का रखता है,
तब हजार बहाने करके ओ धीरे से वह पीछे हटता है।

अजीब है मित्र,मानव के मन में उम्मीद का सिक्का,
उम्मीद पूरी हुई तो ठीक,नहीं तो टूटा रिश्ता सबका।

हर मानव को चाहिए नरम होकर,झुक करके रहना,
बिखरेगा,दिखाओगे झूठा रुतबा जब तुम अपना।

उम्मीद के सिक्के की यह,बहुत अजीब है कहानी,
मनोकामना पूरी नहीं की,तो फिर बढ़ेगी दुश्मनी।

उम्मीद का सिक्का ही घर,परिवार,मित्रता बनाता है,
उम्मीद का सिक्का ही,सम्बन्धों से अलग कराता है॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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