सौदामिनी खरे दामिनी
रायसेन(मध्यप्रदेश)
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कबहु नशा मत कीजिए,यह अवगुण की खानl
जो नशा कछु है करा,आज ही दीजे निकालll
जो साजन मदिरा पिये,नाही सजनी के जोग।
रोज नशा में रत रहे,हजार सता रहे रोगll
नशा रोग हद से बढ़े,मिट जाये घर-द्वार।
छूट गये रिश्ते सगे,घर में मचाये रारll
सब मेहनत की पूँजी,नशा-पत्ता में जाये।
सुत दारा दुश्मन भये,प्रीति दूर हो जायेll
सदबुद्धि मिली रही,कबहु किये नहीं सत्काम।
राहू की भई वक्रगति,बिगड़ गये सब कामll
आब गयी इज्जत गयी,गया मान सम्मान।
यह गैल सर्वनाश की,नहीं चलिये सुजानll
कंचन जैसी देह का,नशा करे है नाश।
नशा कबहु न कीजिए,यह नरक की बाटll
परिचय-सौदामिनी खरे का साहित्यिक उपनाम-दामिनी हैl जन्म-२५ अगस्त १९६३ में रायसेन में हुआ हैl वर्तमान में जिला रायसेन(मप्र)में निवासरत सौदामिनी खरे ने स्नातक और डी.एड. की शिक्षा हासिल की हैl व्यवसाय-कार्यक्षेत्र में शासकीय शिक्षक(सहायक अध्यापक) हैंl आपकी लेखन विधा-गीत,दोहा, ग़ज़ल,सवैया और कहानी है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय दामिनी की लेखनी का उद्देश्य-लेखन कार्य में नाम कमाना है।इनके लिए प्रेरणापुन्ज-श्री प्रभुदयाल खरे(गज्जे भैया,कवि और मामाजी)हैंl भाषा ज्ञान-हिन्दी का है,तो रुचि-संगीत में है।