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कभी सोचा न था…

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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हर रिश्ते से बँधी थी
पर कोई भी रिश्ता
मेरा न था,
रिश्तों में फासले तो थे पर
वे इतने खौफनाक भी हो सकते हैं,
कभी सोचा न था।

हमसफर बनाया था जिसे, हमसफर तो था,
पर साथी न बन सका।
रहते थे इक मकां में पत्थर की तरह
क्योंकि वो मकां था,घर न बन सका।
घर न होने का दर्द,
ऐसा भी होता है
कभी सोचा न था।

गीली रेत पर लिखा था
अपना नाम उसके नाम के साथ,
हवा का इक झोंका आया
रेत के साथ नाम भी उड़ा ले गया।
नाम का वजूद मिटने का दर्द,
ऐसा भी होता है
कभी सोचा न था।

मुट्ठी में बंद रेत की तरह
कब फिसल गया वो,
मालूम न था।
रीती मुट्ठी लिए खड़े रहने का दर्द
दर्दनाक इतना भी होता है,
कभी सोचा न था।

होता है जो रिश्ता दिल के करीब
वही दे जाता है इतना दर्द,
कहते हैं दीए जलाकर रोशनी करो।
पर दीए के नीचे के अँधेरे का दर्द,
कितना होता है दीए को
ये सोचा न था॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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