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क्या होगा दुनिया छोड़कर

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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साक़ी अगर उदास हुआ,मयकश को आता देखकर,
ख्याल-ए-जन्नत ख्वाब है,क्या होगा दुनिया छोड़कर।

उनकी मुस्कराहट में छुपे राज का,कैसे पता चले,
रोने का फरेब कर लेते हैं,जो आँखों को पोंछकर।

तेरी गली में गुजारी जिंदगी,दिल का हाल बताने को,
अब क्या पूछना चाह रहीं वो,मेरा जनाजा रोककर।

खरीदने वाले की नहीं खता,मुखौटे मिलते बाजारों में,
चेहरे पर कालिख लगी,क्या होगा आईना पोंछकर।

खुद से खफा,खुद से दुखी,फिर भी खुद को ढूंढते,
खुदा जिनके साथ नहीं,क्या होगा उन्हें झिंझोड़कर।

इंसानियत को बेच दिया,मूल्य-संस्कार दिये हो फेंक,
नसों में जिनके जहर बहे,क्या होगा नासूर फोड़कर।

सोच-समझ नहीं संवरेगी,दिल में कुछ दिमाग में कुछ,
सपनों के महलों का वजूद,मिटता नहीं है तोड़कर।

हर चीज को अपना लो,यही बनी है अब दुनियादारी,
हवा की अजीब है फ़ितरत,क्या होगा रूख मोड़कर।

दौलत के भंडार से घिरे,पर खुशियों के मोहताज,
दिलों को जोड़ा नहीं,क्या पाया ये दौलत जोड़कर।

औलादें फर्ज अदायगी करतीं,चंद टके भिजवा दिए,
बूढ़ी आँखों को इंतजार है,आना ना जिन्हें लौटकर।

‘देवेश’ क्यों नाहक परेशान हो,कहते हैं लोग मुझे,
नींद आती नहीं,कैसे सो जाऊं मैं फिर चादर ओढ़करll

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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