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खंडित आज़ादी

गंगाप्रसाद पांडे ‘भावुक’
भंगवा(उत्तरप्रदेश)
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लो आया चौदह अगस्त,
भारतीय इतिहास का
काला दिवस,
आज ही भारत माँ को बांटा गया,
उसका एक हाथ
काटा गया,
अखंड भारत की
शहीदों की कल्पना
को कर दिया चूर-चूर,
कर दिया सर धड़ से
अलग,
विभाजन की शर्त पर
सत्ता लोभियों ने स्वीकारी
आजादी,
फैला दी जाति भेद की
बर्बादी,
अरे कायरों कुछ दिन
और करते संघर्ष,
फिर मनाते संपूर्ण
अक्षत भारत की
की आजादी का हर्ष,
लेकिन,
उधर जिन्ना,
इधर जवाहर,
बीच में विदूषक
गांधी,
तीनों ने थोपी
माँ पर बटवारे की आँधी,
हुई अपार जनहानि,
बहीं खून की नदियाँ
बिछीं लाशों पे लाशें,
हुई जिन्ना की
ताजपोशी,
अपनों ने गंवायी जान,
माँ की अखंडता हुई खंडित
बन गया पाकिस्तान,
हुआ शहीदों का अपमान
आज भी हम झेल रहे हैं,
खंडित आजादी का दंश
मुँह बाएं खड़ा है,
आतंकी कंस।

परिचय-गंगाप्रसाद पांडेय का उपनाम-भावुक है। इनकी जन्म तारीख २९ अक्टूबर १९५९ एवं जन्म स्थान- समनाभार(जिला सुल्तानपुर-उ.प्र.)है। वर्तमान और स्थाई पता जिला प्रतापगढ़(उ.प्र.)है। शहर भंगवा(प्रतापगढ़) वासी श्री पांडेय की शिक्षा-बी.एस-सी.,बी.एड.और एम.ए. (इतिहास)है। आपका कार्यक्षेत्र-दवा व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त प्राकृतिक आपदा-विपदा में बढ़-चढ़कर जन सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-हाइकु और अतुकांत विधा की कविताएं हैं। प्रकाशन में-‘कस्तूरी की तलाश'(विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह) आ चुकी है। अन्य प्रकाशन में ‘हाइकु-मंजूषा’ राष्ट्रीय संकलन में २० हाइकु चयनित एवं प्रकाशित हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक एवं राष्ट्रीय ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना एवं उनके निराकरण की तलाश सहित रूढ़ियों का विरोध करना है। 

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