कुल पृष्ठ दर्शन : 556

You are currently viewing दूर के ढोल सुहावने

दूर के ढोल सुहावने

राधा गोयल
नई दिल्ली
******************************************

एक बार हम यूरोप घूमने गए थे। पेरिस से हमने सबको उपहार में देने के लिए छाते खरीदे। उन छातों पर यूरोप के पर्यटन स्थलों के चित्र बने हुए थे। अपनी सभी देवरानियों व सबकी बहू-बेटियों के लिए छाते लाए थे। सबको वो भेंट किए। मेरी बहू का छाता २ बार के इस्तेमाल में टूट गया। मैंने कहा-“ला छाता मुझे दे दे।”
“आप क्या करोगी ? वो तो मैंने फेंक दिया।”
अन्य सभी से फोन करके पूछा कि, क्या छाता सबको पसंद आया।
बोले- “हाँ ताई जी! छाता तो बहुत पसंद आया, लेकिन बड़ा कमजोर था। २ बार इस्तेमाल किया और टूट गया।”
“कमाल है। अरे इंपोर्टेड था। टूट कैसे गया। इंपोर्टेड वस्तुएँ तो तुम लोगों को बहुत अच्छी लगती हैं। एक मैं ही ऐसी सनकी हूँ जो इंपोर्टेड के नाम से बिदकती हूँ, मगर तुम लोग तो इम्पोर्टेड सामान के दीवाने हो। उसका गुण गाते नहीं थकते। लोकल सामान का बहिष्कार करते हो, इसलिए उपहार स्वरूप तुम्हारे लिए खूबसूरत पर्यटन स्थल पेरिस से छाते लाई थी। अब टूट गए हैं, तो उनका क्या किया ?”
“ताई जी, वो तो हमने फेंक दिए।”
“हाय रे इम्पोर्टेड सामान के दीवानों! अरे बेदर्दी लोगों ! तुमने ऐसा जुल्म क्यों किया ?
इम्पोर्टेड सामान का ऐसा अपमान ? अरे टूट गए थे तो क्या हुआ ? एक यादगार थे। यूरोप से आए थे। क्यों फेंके ??”
“ताई जी टूट गए थे।अब टूटे हुए छातों का क्या करते ?”
“तो भी क्यों फेंके। टूटे छाते मुझे वापस कर देने थे।”
“आपने क्या करना था ?”
“मैं आस-पास के सारे विद्यालयों में जाती। वहाँ जाकर बच्चों को दिखाती कि बच्चों देखो, ये हैं इंपोर्टेड छाते। पेरिस से लाए थे। पता है कितने मजबूत हैं ? बहुत ज्यादा मजबूत हैं। पूरे २ बार इस्तेमाल किए हैं… पूरे २ बार। इतना मजबूत होता है बाहर का सामान, लेकिन अब सबने ही फेंक दिए हैं तो किसी को क्या दिखाऊँगी ? विदेशी वस्तुओं के प्रति आकर्षण को कैसे दूर करूँगी रे निर्दयी लोगों ? तुमने ऐसा क्यों किया 😕 पेरिस के छातों का ऐसा अपमान क्यों किया रे बेदर्दी लोगों ? तुम्हें इम्पोर्टेड सामान को फेंकते हुए जरा भी दर्द नहीं हुआ ?”
एफिल टावर के बाहर छोटे-छोटे बच्चे छोटे-छोटे चाबी के गुच्छे लेकर बैठे हुए थे।उसमें १ इंच का एफिल टावर का मिनी स्वरूप था। ऐसे गुच्छे…उससे भी ज्यादा खूबसूरत हमारे यहाँ चाँदनी चौक पर १०-१० ₹ में मिल जाते हैं, जो वहाँ से डेढ़ यूरो में लाए।
हम कहते हैं कि हमारे यहाँ बाल श्रम होता है, लेकिन जिन्हें हम बहुत अमीर देश समझते हैं, यह असलियत वहीं जाकर खुलती है कि वे कितने अमीर हैं। और वहाँ पर भी बाल श्रम होता है। यूरोप के कई देशों में इस बात का अनुभव हुआ। पेरिस, रोम, वेनिस…यहाँ तक कि लंदन भी… जहाँ हर ९ शो-रूम पर ‘फार सेल’ लिखा हुआ था। उसके बाद एक खुला हुआ था। फिर ९ पर ऐसे ही लिखा था। कतार से ढेरों शो-रूम थे।

हम विदेश में कई जगह घूमने गए, लेकिन कहीं से भी कुछ नहीं खरीदा क्योंकि जो कुछ वहाँ मिलता है, उससे कहीं ज्यादा अच्छा हमारे अपने देश में मिल जाता है। कश्मीर में खूबसूरत पेपर मैशी का बना हुआ सामान। दिल करता है सारा ही खरीद लो। उदयपुर, जयपुर, जोधपुर में बेहद सस्ते कपड़े। हर सामान बेहद खूबसूरत। एक से एक लज़ीज़ व्यंजन। होटलों में बड़े प्यार से खाना खिलाते हैं। घूमने के लिए इतने पर्यटन स्थल कि, अकेला राजस्थान ही १ महीने में देख पाओगे। यूरोप में तो कोई पानी तक को नहीं पूछता। कहीं कोई प्याऊ नहीं। कोई सार्वजनिक शौचालय नहीं। प्यास लगी हो तो सड़क पर कोई पानी की…कोल्ड ड्रिंक की…आइसक्रीम की या फलों की रेहड़ी नजर नहीं आएगी। पानी भी या तो शॉपिंग मॉल में मिलेगा या किसी रेस्टोरेंट में, वह भी पैसे देकर…वरना प्यासे मरते रहो। वहाँ भोजन से पहले पानी का जग और ग्लास नहीं।आता। पानी की बोतल। और वो भी पैसे देकर। दूर के ढोल बड़े सुहावने लगते हैं। असलियत देखने पर ही पता लगती है।

Leave a Reply