कुल पृष्ठ दर्शन : 195

You are currently viewing बिन साजन नहीं होली

बिन साजन नहीं होली

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
*******************************************

जीवन और रंग…

बिन साजन के सुहाती नहीं होली,
बिन सजना का कैसे खेलूंगी होली
भाता नहीं है व्रत, त्यौहार, ससुराल,
चुभन होती है देखने से, रंग-गुलाल।

याद है जब पिया संग, होली खेली,
सर में दिए थे गुलाल, भरके हथेली
याद है दौड़-भाग के गुलाल लगाना,
चुपके-चुपके प्यार से, गले लगाना।

सखी बहुत प्यारे थे, हमारे सजना,
रंगों की बौछार होती, हमारे अंगना
बिन साजन के शोभे नहीं सिंगार,
उजड़ा है हमारा, होली का त्यौहार।

सूनी लगती होली, सूने पर्व-त्यौहार,
हे देवा लौटा दो फिर से, मेरा प्यार
प्रीत का रंग लगा के, सजना सो गए,
ढूँढती है ‘देवन्ती’, तुम कहाॅ॑ खो गए।

लगाओ फिर से आकर गुलाल पिया,
जीवन का रंग उदास हुआ सुनो पिया।
गगन में छा गई, सात रंग की गुलाल
तेरे बिन सूनी होली, मन में है मलाल॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है

Leave a Reply