डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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जीना जैसे पिता…
पिता जो मेरी प्रेरणा थे,
वही थे मेरे सम्बल,सहारे
उसी ने तो जीना सिखाया,
अब जीना, जैसे पिता हमारे।
आए कोई मुसीबत सिर पर,
बिना बोले जो समझ जाए
जग की रीत और ऊँच-नीच
वो बातों-बातों में समझाए।
पापा-पापा जब रटती थी,
बड़े मजे के दिन थे हमारे
दुनिया हसीं थी कितनी,
जब तक थे वे साथ हमारे।
वो दिन भी भला कैसे भूलूँ,
हवा में, जिन बाँहों ने उछाला
मैं अपनी मंजिल को पाऊँ,
उसने अपना सर्वस्व दे डाला।
खलती है अब कमी तेरी,
तुझसा कोई नहीं मिलता।
तेरे जैसा ना शुभचिंतक यहाँ,
प्यार, विश्वास नहीं मिलता।
दुनिया इतनी भी बेसुरी है,
इसका एहसास नहीं था
जब तक था हसीं साथ तेरा,
दु:ख का आभास नहीं था।
वह कौन-सी, कैसी दुनिया है,
जहाँ से, कोई लौट ना पाए।
कोई खबर, ना कोई पतिया,
काश! एक बार कोई मिलाए।
अब इबादत यही है मेरी,
कुछ तेरे लिए लिख जाऊँ।
जो कुछ तुझसे है सीखा,
उसका मान मैं रख पाऊँ॥