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राष्ट्रीय चेतना कॆ लिए निजी स्वार्थ का बलिदान जरुरी

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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राष्ट्रीय चेतना का अभिप्राय(समाज की उन्नति) राष्ट्र की चेतना-प्राण शक्ति समाज से है। राष्ट्र शब्द समाज के अर्थ में ही प्रयुक्त होता है। जिस क्षण समुदाय में एकता की एक सहज लहर हो,उसे राष्ट्र कहते हैं। समाज और साहित्य का भी विरोध संबंध है। साहित्य सामुदायिक विकास में सहायक होता है, सामुयिक भावना भी राष्ट्रीय चेतना का अंग है।
राष्ट्र के विकास के लिए भौतिक और आध्यात्मिक चेतना का होना आवश्यक है। भौतिकवाद विकास के अंतर्गत राष्ट्र का सबंध आर्थिक,वैज्ञानिक,नैतिक,राजनीतिक, शैक्षणिक रूप से तथा सैन्य बल से विकसित होना अति आवश्यक है।
आध्यात्मिक चेतना के अंग-आत्मिक, मानसिक,बौद्धिक,नैतिक तत्व हैं। राष्ट्रोन्नति का उत्तरदायित्व किसी एक विशेष का नहीं,और न ही सरकार का है। प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व सामूहिक रूप से उत्तरदायी है,परन्तु कुछ व्यक्तियों पर जो सरकार के उच्चपदाधिकारी हैं,उन पर राष्टोन्नति का सीधा उत्तरदायित्व है, किन्तु हर व्यक्ति वह चाहे जिस स्थिति में हो,अपने कर्तव्यों कॆ पालन द्वारा राष्ट्र के भौतिक और नैतिक उत्थान में योगदान दे सकता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में उचित और सुरक्षित चिकित्सा प्रणाली को लागू करना चाहिए ताकि,एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो सके। भारत की आयुर्वेद की पद्धति को सुचारू रूप से बढ़ावा मिलना चाहिए। राष्ट्र की चेतना का आधार योग और आध्यात्म भी है। योग और आध्यात्म की शिक्षा का विश्व स्तर पर प्रचार-प्रसार होने से भी राष्ट्र की चेतना को बल मिलेगा। राष्ट्र का विकास वहां के स्वस्थ नागरिकों तथा पर्यावरण पर भी आधारित है।
शिक्षा समाज की नींव है। यह समाज की रीढ़ की हड्डी है। रीढ़ या नींव मजबूत नहीं है तो उस पर एक भव्य महल नहीं बन सकता है। राष्ट्र की चेतना सद्शिक्षा में भी वास करती है। शिक्षा में जब पराविधा (आत्मिक विधा)का समन्वय होता है,वह विधा राष्ट्र को स्वस्थ मन,अच्छी सोच वाला समाज प्रदान करती है। राष्ट्र की चेतना शिक्षा के व्यापार में निहित नहीं एवं शिक्षा के ग्रहण करने में निहित है।जब हम किसी वस्तु को ग्रहण करते हैं तो उसमें हमारा सदभाव,श्रद्धा,प्रेम,समर्पण सम्मिलित होता है और उसके प्रति सेवा की भावना तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना जागृत होती है। राष्ट्र का विकास सुदृढ़ राजनीति के बल पर टिका हुआ है। राजनीति को आध्यात्म (ईमानदारी,सच्चाई, अहिंसा,शांति)के जल से सींचा जाए तो वह राजनीति राम-राज्य की अनूभूति का आनंद प्रदान कर सकती है। इससे लोक कल्याण की भावना का जन्म होता है ।
विज्ञान के क्षेत्र में अल्बर्ट आईन्सटीन ने कहा था कि धर्म के बिना विज्ञान अंधा है और विज्ञान के बिना धर्म मृतक है। संसार में कष्टों, दु:खों और विनाशकारी अज्ञान का सबसे बड़ा कारण यही पाया गया कि वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ धर्म की शक्ति को नहीं पहचाना गया। विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान का होना। विशेष (यानि शेष ना हो) यानी अनंत में कुछ जोड़ा जाए तो भी अनंत ही रहे और अनंत में से कुछ निकाला जाए तो भी अनंत ही रहे। ज्ञान का अर्थ जानना विवेक होना है। समाज विवेकशील होगा तो राष्ट्र की चेतना में चैतन्य बल का प्रवाह प्रवाहित होगा और समाज सदबुद्धि से युक्त होगा। राष्ट्र दिन दोगुनी-रात चौगुनी उन्नति करेगा।
नैतिकता हमें कर्तव्यनिष्ठ,धर्मपरायण मर्यादा की परिभाषा सिखाती है। जब हम अधिकारों की बात करते हैं और माँगते हैं तो हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए।
एक राष्ट्र में चेतना भरने के लिए हमें अपने निजी स्वार्थ का बलिदान करना होगा,तभी हम राष्ट्र के लिए परोपकार का कार्य कर सकते हैं। दूसरों के हित का ध्यान रखकर ही हम राष्ट्र के हित के लिए कार्य कर सकते हैं। नैतिक मूल्यों को समझने के लिए अच्छा साहित्य भी पढ़ाना चाहिए। इससे देशप्रेम की भावना जागृत होगी।
मनुष्य की सोच सकारात्मक होनी चाहिए, जिससे वह मंजिल को पाने में सारी बाधाओं का निवारण कर सकता है। सकारात्मक सोच ही स्वस्थ मस्तिष्क,मन,चित्त और स्वस्थ शरीर प्रदान कर सकती है। इसलिए,राष्ट्र की चेतना तभी सजीव होती है जब धर्म का समन्वय हो तो वह राष्ट्र बुलंदियों के शिखर को छू सकता है। आज पाखण्डियों,धर्माचार्यों ने अपने अनुसार धर्म को अनेक पंथ में विभाजित कर दिया है। अनेक मजहब बनाए गए,जिससे जात-पात की दीवारें खड़ी कर दी। इससे राष्ट्र की अवनति होने लगी है। जात-पात,मजहब की राजनीति भी देश के विकास में बाधा डालती है। धर्म के नाम पर अनेक गुरूओं का व्यापार खुल गया है। भौतिकवाद की आग में झुलसे चेहरों ने देश में दंगे करा कर राष्ट्र की आर्थिक सम्पत्ति को हानि पहुँचाने के साथ-साथ जानलेवा हमले भी किए,जिससे राष्ट्र की सजीवता खतरे में पड़ गई।
राष्ट्रीय चेतना निस्वार्थ भाव में छिपी हुई है। निस्वार्थ भाव मानव के मन में कैसे जागृत हो,इसका मार्ग हमें हमारे धर्म-ग्रन्थ,सभ्यता-संस्कृति,संस्कार,वैदिक परम्परा और सद्गुरु की संगति बतलाती है। भाषा,परिवेश भी राष्ट्र में चेतना का विकास करता है। राष्ट्र की भाषा भी राष्ट्र की पहचान है। हमें अपनी भाषा का वर्चस्व बनाए रखना चाहिए। ऐसा करने से देश का गौरव बढ़ता है।
मानव स्वयं को जान जाए तो उसकी सोच बदल सकती है और सोच बदलने से ही युग परिवर्तन होता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस की शरण में जब स्वामी विवेकानंद जी आए तो गुरु ने पूछा-तुम कौन हो ? विवेकानंद जी ने उत्तर दिया-महात्मन् मैं यही जानने आया हूँ कि “मै कौन हूँ ?” उसने गुरु कृपा से स्वयं को जाना और देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत होकर पूरे विश्व को एक परिवार माना तथा अपने राष्ट्र के आध्यात्म ज्ञान का प्रचार किया। इन जैसे कईं महापुरूषों ने राष्ट्र की चेतना को बल प्रदान किया। साहित्यकारों तथा अनेक महान कवियों ने भी अपने साहित्य और कविताओं द्वारा राष्ट्र की चेतना में बल फूँका,जिससे राष्ट्र की रूढ़िवादी परंपराओं से समाज को मुक्ति मिली।
राष्ट्रीय चेतना का जीवंत उदाहरण है कि-एक गांव के बाहर कुछ व्यक्ति ईंट बना रहे थे। एक विशेषज्ञ ने पूछा-तुम क्या कर रहे हो ? उसने कहा-देखते नहीं,ईंट बना रहा हूँ। उसने पूछा-इसका तुम क्या करोगे ?
मैं इन्हें बेचूंगा और परिवार का पालन-पोषण करूँगा। फिर उसने दूसरे व्यक्ति से पूछा-तुम क्या कर रहे हो ? मैं ईंटें बना रहा हूँ। मेरे गाँव कॆ लोग मुझसे ईंट खरीदेंगें और अपने घरों का निर्माण करेंगें। अब वह व्यक्ति तीसरे व्यक्ति के पास गया और पूछा-भाई तुम क्या कर रहे हो ? मैं एक राष्ट्र का निर्माण कर रहा हूँ। मेरे देशवासी इन ईंटों को खरीदेंगें और अपने घर बनाएँगे। यह राष्ट्रप्रेम की भावना है। राष्ट्र कॆ हर नागरिक,समाज में देशप्रेम की भावना हो तो उस राष्ट्र की चेतना को कभी ग्रहण नहीं लग सकता। राष्ट्रीय चेतना को जागरूक रखने के लिए आत्मचिन्तन तथा मन्थन बहुत अनिवार्य है,जो राष्ट्र को सही दिशा प्रदान करे।

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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