कुल पृष्ठ दर्शन : 180

You are currently viewing हस्पताल के दिन

हस्पताल के दिन

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
*****************************************

उदासी में उगती हर सुबह यहां की,
उदासी में डूबती हर सांझ और रात
उदासी में ही बीतता है दिन भी सारा,
बीमार बेटे के देख कर बिगड़े हालात।

कभी दिमाग में संक्रमण तो कभी,
दिल में छेद की डाक्टर कहता बात
हर रोज बीमारी नई-नई सुन कर,
कैसे खुश रहता जवान बेटे का बाप ?

कब तक छुपाऊं बेटे से कितना और कैसे ?
परेशान माँ, दादी, छुटकू, कुल कुनबा साथ
एक ही आश-विश्वास कि रब राखेगा अब,
उसके आगे भला किसकी क्या औकात ?

सिर तो फाड़ा है सीना भी चीरना है,
क्यों कर उदास न होगा एक बाप ?
यह जगह है, जहां पैसा तो चाहिए ही,
पर सबसे ज्यादा चाहिए रब का साथ।

गुरुद्वारे का कीर्तन चहुँओर है गूंजता,
मस्जिद की गूंजती है ऊँची-सी अजान
मंदिरों का शंख-घंटा नाद भी है गूंजता,
पर तुम कहां छुपे हो हे करुणानिधान ?

भूत का प्रारब्ध है भोग रहे यह या कि,
भविष्य का संचित वर्तमान का क्रियमाण ?
पूछता हूँ बार-बार सवाल कई ऐसे बस,
निरुत्तर है दीवारें हस्पताल की आलीशान।

जानता हूँ हर जन्म का अन्त मरण है,
वह आएगा, यह एक कड़वी सच्चाई है।
अस्त-व्यस्त हो जाए जवानी में जीवन,
कुदरत की भला इसमें कौन भलाई है ?

हँसने-खेलने के जो दिन होते हैं जीवन के,
क्या बीत जाएंगे बेटे के रोग-शोक में नाथ ?
आक्रोश घना है, उतारूं तो उतारूं किस पर ?
मानुष जीवन की विवशताएं कही न जात।

गुनाह जरूर हमारा ही होगा दाता,
यही तो फितरत जगत में इंसानी है।
यह आक्रोश व तुझ पर मढ़ना दोष,
यह हमारी मनुष्य सोच की नादानी है॥

Leave a Reply