उफ़…ये गर्मी!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* उफ़…ये गर्मी त्रासदी, जेठ दुपहरी ताप।फिर भी पत्थर तोड़ते, मज़बूरी अभिशाप॥ शीतल मंद समीर नित, कहीं धूप कहँ छाँव।उमर-घुमड़ बरसे घटा, पुन: तपिश उद्भाव॥…

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ओ मेरे हमदम

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* वीरान जंगल,अनजाने रास्तेलंबा सफर और,गीत सूफियानागर तुम न होते तोकैसे हो मौसम सुहाना। ये सुहानी राहें,जहाँ मिले थे हमआज भी बाँहें फैलाएआलिंगन करे, कहे थम,तेरे गीतों…

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श्रमिकों की वंदना

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* मजदूरों का नित है वंदन, जिनसे उजियारा है।श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है॥ खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति-वाहक हैं,अन्न उगाते,स्वेद बहाते, सचमुच…

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लथ-पथ मजदूर

डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में,अक्सर धनवान लोग रहते हैंसब इसे जन्नत का, सैर-सपाटे का,खुबसूरत नाम कहते हैं। यहाँ सुविधाएं ऐशो-आराम का,बड़ा-सा समन्दर रहता हैज़िन्दगी को खूबसूरत बनाकर,ज़ीने का सुखद अहसास और…

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आम आदमी

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’जमशेदपुर (झारखण्ड)******************************************* आम आदमी नित सुख का ढूँढ़ता आकाश,धरती पर नित करता जीवन के लिए प्रयासपरिवार उसका संसार औ नीड़ है संवारता,छोटे या बड़े हों स्वप्न अनेक,…

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सबब

संजय एम. वासनिकमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************* मिलने के लिए सबब हो,ये जरुरी नहींमिले नहीं हर तो दूरियाँ बढ़ जाएंगीये ज़रूरी नहींसुख-दु:ख की बातें बाटंने के लिए गुफ़्तगूतो ज़रूरी नहीं…। अकेले ही जिदंगी…

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कुछ गुम-सुम से हैं

डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** यहाँ जमाने की ठोकरों से,ज़िन्दगी परेशान हैकुछ भय से कुछ टूटते हुए रिश्तों से,परेशान हैं। खौफ है यहाँ,रास्ते बन्द हो गए हैं यहाँडर और भय का माहौल है यहाँ,कुछ…

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अच्छे की दरकार

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’कानपुर(उत्तर प्रदेश)********************************************* जनता को तो है फक़़त, अच्छे की दरकार।चाहे जिसकी भी बने, इस बारी सरकार॥ कण-कण जब है जोड़़ता, तब बनता धनवान।क्षण-क्षण को श्रम से…

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ये प्रीत की डोर

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* तू एक छोर, मैं एक छोर,ये प्रीत की डोरन पड़े कमजोर,बंधे पुरजोर। तूफान मचाए कितना भी शोर,आंधी कर दे हमें झकझोरखिंचा चला आये मेरी ओर,झूमे जब…

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बैठे-बैठे यूँ ही…

अरुण वि.देशपांडेपुणे(महाराष्ट्र)************************************** बैठे-बैठे यूँ ही,कभी अचानकजग सारा सूना-सूना-सा,पराया लगने लगता है। बैठे-बैठे यूँ ही,दिल को क्या हो जाता है ?मन की अवस्था विचित्र-सी,कितना भी कुछ करोबहलाना मुश्किल हो जाता है।…

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