कर्ज का दंश

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’अलवर(राजस्थान)*********************************************** अरे! आ गए आप। आज बड़ी जल्दी आ गए।सब खैरियत तो है ? मैं कई दिनों से देख रही हूँ आप बहुत उदास उदास से नजर आ…

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पश्चाताप के आँसू

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’अलवर(राजस्थान)*********************************************** दिनेश, ओ दिनेश…भैंस को पानी पिला दे बेटा। अब तो तू बड़ा हो गया है। थोड़ा बहुत घर के काम-काज में भी हाथ बटा लिया कर। मैं…

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फर्ज..अपना-अपना

गोपाल मोहन मिश्रदरभंगा (बिहार)***************************************** अरे पापा आप अभी तक तैयार नहीं हुए। बैग कहाँ है आपका ? चलिए मैं पैक करती हूँ। पापा ने एक उदास नजर नीलू पर डाली।…

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बारात…

डॉ. सोमनाथ मुखर्जीबिलासपुर (छत्तीसगढ़)******************************************* 'बारात' में जाने की बात सुनकर किसे न अच्छा लगता है। सब लोग एक से एक कपड़े में सज-धजकर बैंड-बाजा,रौशनी,डीजे की धुन के साथ थिरकते हुए…

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माँ का आँचल

स्मृति श्रीवास्तवइंदौर (मध्यप्रदेश)********************************************* कल्पना की सुबह-सुबह ही नींद लगी थी। सुबह ४ बजे तक तो वह घड़ी ही देख रही थी। क्या करती,पति के व्यापार में हुए घाटे के कारण…

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शहीद…

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’इन्दौर(मध्यप्रदेश)************************************ एक छोटे से गाँव में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा था। पूरे गाँव को रंग-बिरंगी झंडियों से सजाया गया था। सरकारी विद्यालय के विद्यार्थी खाकी पेंट…

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अबोध कली

स्मृति श्रीवास्तवइंदौर (मध्यप्रदेश)********************************************* सुबह उठकर पौधों के साथ समय बिताना राधा को बहुत पसंद है। रंग-बिरंगे फूलों की खुशबू और ताजी हवा राधा को अंदर से ऊर्जावान कर देती है।…

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उसूल

डाॅ. पूनम अरोराऊधम सिंह नगर(उत्तराखण्ड)************************************* एक पत्थर पर एक ओर आलोक व दूसरी ओर नेहा दोनों ही मिलने के लिए हाथ बढ़ाए हुए हैं,किन्तु तिल भर के लिए उनके हाथ…

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लज्जा हीन

स्मृति श्रीवास्तव इंदौर (मध्यप्रदेश)********************************************* 'हैलो! रजनी सब तैयारी हो गई ना ? कितना पैसा इकट्ठा हुआ है ? उसे एक लिफाफे में रख लेना,खुले पैसे देना अच्छा नहीं लगेगा।'रजनी ने…

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हमसफ़र

शशि दीपक कपूरमुंबई (महाराष्ट्र)************************************* मन की किताब पर एकांतवास पसरा हुआ था। देवनार के वृक्ष की जड़ें चारों ओर मन की ज़मीं पर फैलीं हुई थीं। दुश्वारियों के रेले को…

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