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ट्रम्प का मोदी से मदद मांगना ‘कृष्ण’ की ‘सुदामा’ से गुहार…!

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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`कोरोना` संकट से घिरे दुनिया के ‘महाबली’ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब रविवार को हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कोरोना से लड़ने दवा की मदद मांगी,तो लगा मानो आज ‘कृष्ण’ को ही ‘सुदामा’ की सहायता की जरूरत पड़ गई है। खुद अपने देश में मुँह पट्टी या मुखौटे,पीपीई और वेंटीलेटर की कमी से जूझने के बावजूद मोदी ने ट्रम्प को भरोसा दिया कि जो संभव होगा,वो मदद करेंगे। दरअसल,कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने दुनिया के तमाम अमीर और बाहुबली देशों की हेकड़ी निकाल कर रख दी है। अगर हम अपनी आंतरिक समस्याओं,कोरोना एजेंडों,जमातियों और गैर जमातियों से हटकर जरा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर नजर डालें तो आज पूरे विश्व में मुखौटों(मॉस्क)व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण(पीपीई) और वेंटीलेटर का भारी टोटा पड़ गया है। हालत यह है कि,लोग एक-दूसरे का माल ‘चुराने’ में भी संकोच नहीं कर रहे।

उधर,चीन कोरोना संकट से संभलकर फिर दुनिया का सबसे बड़ा मुखौटा और पीपीई उत्पादक और आपूर्तिकर्ता बन गया है। हालांकि,कई देशों को यह चीनी माल भारी पड़ा और उन्होंने इस ‘दरियादिली’ के लिए चीन को कोसा भी है। इस शर्मिंदगी के बाद चीन सरकार ने अब केवल एनएमपीए प्रमाणित मुखौटे और पीपीई निर्यात को अनुमति देने का निर्णय लिया है,साथ ही उसने सफाई दी है कि,घटिया माल आपूर्ति के पीछे काम का दबाव भी है।

वैसे,अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कोरोना से बचाव के लिए अब कई राष्ट्राध्यक्षों से गुहार कर रहे हैं। कल तक आए दिन तमाम देशों को हड़काने वाले और कोरोना विषाणु को ‘चीनी वायरस’ कहकर चीन का मजाक उड़ाने वाले ट्रम्प की यह दशा न सिर्फ दयनीय है,बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि विश्व का सबसे ताकतवर देश एक विषाणु हमले के आगे कितना बेबस हो गया है। इसका एक कारण यह भी है कि,अगर कोरोना इसी तरह अमेरिका पर भारी पड़ा तो इस साल के अंत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प की दोबारा लौटने की उम्मीदों को ग्रहण लग सकता है। बहरहाल,ट्रम्प ने मोदी से आग्रह किया कि वो मलेरिया के इलाज में काम आने वाली `हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन` दवा के आदेश की आपूर्ति को न रोकें। अमेरिका ने इस दवा का आदेश भारत को दिया हुआ है,लेकिन भारत सरकार ने २५ मार्च को ही इसके निर्यात पर रोक लगा दी है,ताकि हमारे यहां इस दवा की कमी न रहे। कारण कि,फिलहाल यही दवा है,जिसके बारे में कहा जा रहा है कि जो कोरोना पर कुछ असर कर रही है। हालांकि, इस बारे में सौ फीसदी वैज्ञानिक पुष्टि अभी होनी है। दरअसल,भारत सरकार का लक्ष्य इस दवा का संग्रहण करना है और अमेरिका की नजर इसी पर है।

वैसे,हाइड्रोक्लोरोक्विन को लेकर भारत की अपनी दिक्कतें हैं। हाल में एक शोध में यह बात सामने आई कि मलेरिया से प्रभावित देशों में कोरोना का प्रकोप अपेक्षाकृत कम है,क्योंकि वहां लोग `कुनैन` की दवा खाते रहते हैं। इस जानकारी के बाद भारत सरकार ने देश की २ बड़ी दवा निर्माता कम्पनियों को १० करोड़ हाइड्रोक्लोरोक्विन गोलियां बनाने का आदेश दे दिया है। वर्तमान में देश में हर माह २० करोड़ हाइड्रोक्लोरोक्विन गोलियां बनाने की क्षमता है,लेकिन इसके साथ दूसरी परेशानी यह है कि,भारतीय दवा निर्माता कम्पनियाँ दवाओं के कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट(एपीआई)के लिए काफी कुछ चीन पर ही निर्भर हैं और चीन से आयात फिलहाल बंद है। जो एपीआई २ माह पहले ८० हजार रू. प्रति किलो मिल रहा था,अब डेढ़ लाख रू. किलो में भी मुश्किल से मिल रहा है। ऐसे में कम्पनियाँ यह आदेश कैसे पूरा करेंगी,यह देखने की बात है। बताया जाता है कि,भारत ने अमेरिका से साफ कह दिया है कि हम अपने देश की १.३० अरब आबादी को कोरोना विषाणु से सुरक्षित करने के बाद ही इस दवा की आपूर्ति उसे कर पाएंगे।

चूंकि,कोरोना की अभी कोई विश्वसनीय दवा नहीं है,इसलिए एहतियाती उपायों और वेंटीलेटर के भरोसे ही काम चल रहा है। ऐसे में दुनियाभर में इन चीजों का टोटा पड़ गया है। जिंदगी बचाने के इन सामानों को लेकर कई देशों के बीच लगभग छीना-झपटी की नौबत है। भारत सहित कई देशो ने इन वस्तुओं के ‍निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।

उधर,चीन फिर इन तमाम वस्तुओं का फिर विश्व आपूर्तिकर्ता बन गया है। चीन ने कोरोना पर काबू कैसे पाया,वहां कोरोना से मरने वालों की तादाद वास्तव में ‍कितनी है,शुरूआती बेपरवाही के बाद चीन कैसे संभला,इस सवालों को अलग रखें तो फिलहाल इतना सच है कि चीन ने आरंभिक झटका खाने के बाद एहतियाती उपाय सख्‍ती से लागू किए। बताया जाता है कि,चीन ने कोरोना फैलते ही जनवरी में २ अरब मुखौटे और ४० लाख वेंटीलेटर खरीद कर लोगों को बांट दिए थे। अब कोरोना पर काफी हद तक नियंत्रण के बाद उसने खुद दुनिया को मुखौटे और पीपीई आदि की आपूर्ति का काम जोरों से चालू कर दिया है। आलम यह है कि,आज चीन १ करोड़ मुखौटे प्रतिदिन बना रहा है, क्योंकि कोरोना दुनिया के अधिकांश देशों में फैल चुका है और विश्व बाजार में मुखौटे और पीपीई की भारी मांग है। यह बात अलग है कि, इस मामले में भी ज्यादातर चीनी उत्पादों की गुणवत्ता ‘चीनी माल’ की तरह ही है। यही कारण है कि,जब दूसरे देशों की मदद का दिखावा करते हुए चीन ने मुखौटे और वेंटीलेटर निर्यात किए तो पहले नीदरलैंड से ये उपकरण घटिया होने की शिकायत आई। नीदरलैंड सरकार ने चीन से आयातित ६ लाख घटिया मुखौटे अस्पतालों और लोगों से वापस बुलवाए। यही स्थिति निम्न गुणवत्ता की परीक्षण किट की भी थी। ऐसी ही शिकायत स्पेन,स्लोवाकिया और चेक रिपब्लिक से भी आई। पाकिस्तान को भेंट किए चीनी मुखौटे तो बहुत शर्मसार करने वाले थे। उसमें चीनी ‍कम्पनियों ने पेंटी में ही डोरियां लगाकर मुखौटे बनाकर आपूर्ति कर दी। ये ‘अश्लील मुखौटे` जब पाकिस्तान पहुंचे तो बहुत मजाक बना। इन तमाम घटनाओं के बाद अब चीन सरकार ने सख्‍ती करते हुए आदेश दिए हैं कि निश्चित मानंदडों के तहत प्रमाणित मुखौटे ही दूसरे देशों को निर्यात किए जाएंगे।

यह तो हुई निर्यात की बात,लेकिन निर्यात की खेपों की भी लूटमार है। ‘द गार्जियन’ की खबर है कि चीन से फ्रांस को विमान से भेजी जाने वाली मुखौटों की खेप को अमेरिकी आयात व्यापारियों ने ‘हाइ जैक’ कर लिया। बताया जाता है कि,इसके लिए ताबड़तोड़ तरीके से माल की तीन गुना कीमत चुकाई गई। ऐसी ही एक और खबर इटली से आई। वहां चीन से आने वाली एक खेप पर चेक रिपब्लिक ने बीच में हाथ मार दिया। १.१० लाख मुखौटे की यह खेप जहाज के रास्ते इटली जाने वाली थी। कुछ इसी तरह की शिकायत जर्मनी ने भी की है। उसने ६० लाख मुखौटे मंगवाए थे,जो केन्या के विमानतल पर गायब हो गए। सबसे ज्यादा मारामारी यूरोपीय देशों में है। इसी तरह अफ्रीकी देश टयूनीशिया ने इटली पर आरोप लगाया कि,उसने वहां से आने वाली प्रक्षालक(सेनिटाइजर)की खेप रूकवा दी।

अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट देखें तो आज दुनिया में प्रति माह ९ करोड़ मुखौटे और ८ करोड़ परीक्षण दस्ताने की जरूरत है। मुखौटे में भी सबसे ज्यादा कमी एन९५ की है,जो सबसे ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं। हालांकि,खुद संगठन भी ४७ देशों को काफी संख्या में मुखौटे व पीपीई भिजवा रहा है। दूसरी तरफ,कोरोना के चलते यूरोप में साइबर अपराध बहुत बढ़ गया है। इसकी जानकारी खुद यूरोपीय यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वान देर लिएन ने दी है। उर्सुला ने एक बयान में कहा कि,`तालाबंदी` और बेकारी के चलते कई यूरोपवासी ऑनलाइन धोखे के धंधे में लग गए हैं।

फिर बात अमेरिका की। खुद को सर्वशक्तिमान होने का दावा करने वाला यह देश अब दवाओं के लिए भारत जैसे देशों से गुहार कर रहा है। ट्रम्प ने हाइड्रोक्लोरोक्विन को कोरोना से लड़ाई में ‘गेम चेंजर’ कहा है। भारत में यह शब्द अमूमन राजनीतिक-आर्थिक टोटकों के लिए प्रयोग किया जाता है। उनका लक्ष्य अमूमन `मत साधना` ही होता है,लेकिन कोई ‘दवा’ भी किसी देश के लिए ‘गेम चेंजर’ हो सकती है,यह मजाक के बजाए गंभीरता से नोट करने वाली बात है।

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