नहीं बनना मुझे निरर्थक
राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ************************************************************************* सुबह-सवेरे अलसाई-सी मैं, ज्यों ही खोला दरवाजा दरवाजे के पास पड़ा, एक फूल था प्यारा। बेहद सुंदर फूल, इधर-उधर नजर दौड़ाई… लेकिन कोई काम न आई। फिर सोचा- तुलसी के गमले बिठा दूं, भगवन् के चरणों में सजा दूं या अपनी वेंणी में लगा लूं! उसने मेरे अंतर्मन की बात … Read more