आ फिर से तू

ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** तू डाल-डाल,वो पात-पात छुपीअस्तित्व पट। पँखे में फंसी,पँख और तिनकेबेहाल गर्मी। स्वर्ण-सी काया,बंधित विचरणसमाप्त माया। बच्चे पूछे है,चित्र किस प्राणी कापक्षी थे कभी। आ फिर से तू,फुदकती रहनाचुनचुन चूँ। तिनके चोंच,आशियाना ढूँढतेगुम है सोच॥ परिचय-ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में … Read more

केदारनाथ सिंह की काव्य संवेदना-विविध पक्ष

डॉ. दयानंद तिवारीमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************ केदारनाथ सिंह के काव्य में पर्यावरणीय चिंता, प्रकृति और जीवन के उल्लास का अहसास तो है ही,हिंदी काव्य धारा में गीतकार के रूप में कवि जीवन की शुरुआत करने वाले केदारनाथ सिंह की काव्य संवेदना अत्यंत विशिष्ट रही है। वे अपने समय के पारखी कवि हैं और उनका कालबोध ही उनके … Read more

तू देव शक्ति

ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** श्वांस-श्वांस सुगन्ध-सी,स्पर्श कोमल पुष्प-सीनारी क्या है तू ये बता!नारायणी या रूपसी। नर कभी बना देव,बना कभी कालिदासकभी सती का शिव है,बना कोई सुकरात। कोई बना रावण तो,है कोई बना तुलसीकोई वध न सका था,तू बनी है देव शक्ति। वो तुझी पर हँसते,है तुमको ही तकतेविमोही कभी मोह में,मोहित हो भटकते। तुझसे रहे किनारा,फिर … Read more

ॐ नमः शिवाय

ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** महाशिवरात्रि विशेष……….. शोभित शीश शशि रहे,जटा जुट गंगधार,भक्तन शिव कृपा करे,नमामि बारम्बार। शम्भू बाघम्बर सजे,सदा से आशुतोष,विश्व भार ले विष गले,ध्यानमग्न संतोष। कंठ भुजंग है लिपटे,नन्दी करे सवार,कैलाशी वासी बने,जग के पालनहार। बेल पत्र धतूरा प्रियम,भांग व आक कनेर,भक्तों की पुकार सुनते,आते करे न देर। क्षीर अक्षत अभिषेक हो,अवधूत विरुपाक्ष,माता अम्बे सँग सदा,शंकर … Read more

एक चाहत,एक हिम्मत और एक औरत

डॉ.हेमलता तिवारीभोपाल(मध्य प्रदेश)*********************************** महिला दिवस स्पर्धा विशेष…… हर बार की तरह आ गया फ़िर ८ मार्च,प्रोफाइल,बॉयोडेटा तैयार होने लगेमुझे भी आमंत्रण के संदेशे आने लगे,अलमीरा पर नज़र खुद-ब-खुद चली गईएक के ऊपर एक चढ़े पुरस्कारों के ढेर,पता नहीं मुस्करा रहे थे,या मुँह चिढ़ा रहे थे। ट्रेन में एसी द्वितीय श्रेणी में बर्थभी मिल गई,पति की … Read more

हिय जले न दुर्वचन

ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** मन का आपा खोने को,बहुत रखे विकल्प।शीतल चंदन बोले,ऐसे हों शब्द संकल्प॥ जलानी पड़ी कितनी,लकड़ी यत्र सर्वस्त्र।हिय जले न दुर्वचन,सुख का यही है मंत्र॥ निज देखे स्वयं वाणी,कि क्या बोल रहे आप।तोल-बोल वाणी न हो,करने होते संताप॥ शब्द घाव-शब्द ताव,शब्द ही मन के मोती।कहीं अंधेरा करते,कभी कर देते ज्योति॥ हम तुम न रहेंगे,इस … Read more

हमारी उन्नत हिंदी भाषा…

ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष…. हिंदी समृद्ध भाषा है,हिंदी उन्नत भाषा है,भाषा के गुण है सभी,करते क्यों रार है। सभी भाषा है सुंदर,बोली प्रेम समुंदर,सबमें रस मिठास,नहीं तकरार है। संस्कृत की पुत्री हिंदी,सभी बहनों में बड़ी,खट्टी-मीठी प्यारी-प्यारी,हमें अंगीकार है। अंग्रेजी से नहीं उर्दू का नहीं है दोष,जनता बोली हो एक,हिंदी ही स्वीकार है। … Read more

‘धूमिल’ का काव्य संसार-भाषा और शिल्प की नई जमीन

डॉ. दयानंद तिवारीमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************ धूमिल ने समाज में स्थित बेकारी,दारिद्र्यता, सामाजिक अनिष्ट रूढ़ियाँ,नारी विषयक दृष्टिकोण, दलितों की स्थिति अनेक समस्याओं से ग्रस्त ग्रामीण जीवन आदि अनेक समस्याओं को अपने काव्य का विषय बनाया और इसमें परिवर्तन लाने के लिए समाज जागृति करने का प्रयास अपनी कविताओं के माध्यम से किया है। धूमिल की कविताओं में … Read more

चमक रहा है भारत

वर्षा तिवारीमुम्बई(महाराष्ट्र)*************************************** बदल रहा है भारत,नई-नई तकनीकीयों के बीचअपने-आपमें निखर रहा है भारत।मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक,अपनी उड़ान भरकरचमक रहा है भारत।विमुद्रीकरण को लाकर,भ्रष्टमुक्त देश की ओरबढ़ रहा है भारत।ज़माखोरों पर नकेल कस कर,विश्व में अपनी धाकजमा रहा है भारत।स्वदेशी वस्तुओं को लाकर,हर तरफ अपना वर्चस्वबढ़ा रहा है भारत।स्वच्छता की ओर कदम बढ़ा कर,चमक रहा है … Read more

प्रिय तुम हो बसंत

ममता तिवारीजांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** प्रिय तुम हो बसन्त,मैं बसन्ती बयार मदिर मंद-मंद। प्रिय तुम धरा में घुली सुगन्ध,मैं तुम्हारे रंगों में रँगी हुई केसरी रंग। प्रिय तुम हो मादक छंद,मैं हूँ तुम्हारी कविता कुसुम मकरन्द। प्रिय तुम हो स्वयं प्रकृति,मैं बहती सरि सागर मिलती हो मलंग। प्रिय तुम बासन्ती झोंके,मैं बहती पवन,कोई रोके न बावरा मन। प्रिय … Read more